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भौतिकवाद से उपर उठकर ब्रह्मत्व की ओर बढ़ते हुए जैन समाज की मुमुक्षु के मन में वैराग्य जागा तो उन्होंने साध्वी के रुप में जीवन.यापन करने का लक्ष्य निर्धारित किया और सोमवार 6 फरवरी 2017 को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघए इंचलकरणजी के तत्वावधान में अभूतपूर्व जनमैदिनी की साक्षी में श्रमण संघीय्ा सलाहकार दिनेष मुनि ने मूलतः गदग ;कर्नाटकद्ध निवासी 19 वर्षीय्ा बाल ब्रहृमचारी श्रुति लंुकड़ को दीक्षा मंत्र प्रदान करते हुए ओगा प्रदान कर संय्ाम पथ अंगीकार करवाया। इस तरह सांसारिक जीवन का परित्य्ााग कर अध्य्ाात्म के मार्ग पर अग्रसर मुमुक्षु श्रुति का नय्ाा नाम साध्वी मोक्षदाश्री दिय्ाा गय्ाा। साथ ही नवदीक्षित साध्वी मोक्षदाश्री को महाश्रमणी साध्वी पुष्पवती की सुशिष्य्ाा साध्वी प्रियदर्षना की लघुगुरुबहन साध्वी डॉण् अर्पिताश्री की शिष्य्ाा घोषित किय्ाा गय्ाा। विदाई के दौरान मुमुक्षु के परिजनों की आंखें छलक उठी और वातावरण ममतामय्ाी हो गय्ाा।
पुष्करवाणी गु्रप ने जानकारी देते हुए बताया कि इंचलकरणजी सकल जैन समाज का प्रथम मौका है जब शहर में जैन दीक्षा संपन्न हुई और पांच दिवसीय महोत्सव के दौरान इंचलकरणजी का माहौल धर्ममय हो गया। इससे पूर्व सबह साढे सात बजे वीरथल का कायर््ाक्रम आय्ाोजित हुआ। इसमें वैराग्यवती श्रुति ने उपस्थित साधु साध्विय्ाों को अपने हाथों से अंतिम बार गोचरी बहराई। इसके पश्चात मुमुक्षु श्रुति की शोभाय्ाात्र्ाा निकाली गई। इस दौरान मुमुक्षु रथ में सवार थी। बैंडबाजों की धुन पर निकाली गई इस शोभाय्ाात्र्ाा में सुमधुर स्वर लहरिय्ाों पर श्रावक श्राविकाएं झ्ाूमते हुए चल रहे थे। वहीं य्ाुवा वर्ग वंदे वीरम के जय्ाघोष के साथ वातावरण में भक्ति रस का संचार कर रहे थे। शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए शोभाय्ाात्र्ाा गुरू आनंद पुष्कर देवेन्द्र दरबार पहुंची। य्ाहां मुमुक्ष श्रुति ने सांसारिक जीवन के अपने अंतिम विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज का दिन हजारों खुषियां लेकर आया है। मैं संयम पथ स्वीकार कर मोक्ष मार्ग पर बढ़ रही हूं। संयम कायरों का नहीं वीरों का भूषण हैं। चार वर्ष पूर्व देखा गय्ाा सपना आज मूर्त रूप लेने जा रहा है। अपने 19 वर्षों के जीवन के दौरान माता पिताए भाई बहनों और अन्य्ा सगे संबंधिय्ाों की ओर से मिले स्नेह का स्मरण करते हुए मुमुक्षु ने कहा कि आज व्य्ाक्ति सौ सुखों की कामन करते हुए एक दुख जीवन में आने पर परेशान हो जाता है। वह य्ाह नहीं सोचता कि उसके पास 99 सुख तो हैए फिर भी वह दुखी रहता है। बस य्ाहीं प्रेरणा उसे सांसारिक जीवन को छोडने की प्रेरणा बनी और शाश्वत सुख के राज को समझ्ाकर वह संय्ाम की दिशा में चल पडी। मुमुक्षु ने संसारिक जीवन में हुई भूलों के लिए अपने माता पिता और श्रावक . श्राविका समाज से क्षमा य्ााचना की और दीक्षा विधि के लिए प्रस्थान किया।
सलाहकार दिनेष मुनि द्वारा मंगलपाठ सुनने के बाद मुमुक्षु जैसे ही वेष परिवर्तन एवं केषलोचन कर पांडाल में प्रवेष किया तो माहौल में श्रद्धाभर आई। सांसारिक परिधानों को त्य्ाागकर केसर य्ाुक्त श्वेत वस्त्र्ाों से सज्जित मुमुक्षु ने सभी संतवृन्दों व साध्वीवृन्दों को तीन बार वंदन करने के पश्चात् आर्षीवाद लिया ओर पुनः सभी से क्षमायाचना करते हुए माता . पिता . श्रीसंघ से अनुमति लेकर दीक्षा प्रदाता दिनेष मुनि से दीक्षा प्रदन करने की विनंति की।
इसके पश्चात् दीक्षा की विधि प्रारंभ हुई। जिसमें 27 बार नवकार मंत्र्ाए तसउत्तरी लोगसए नमोत्थुणंए 3 बार करेमी भत्ते का पाठ दीक्षाप्रदाता सलाहकार दिनेष मुनि ने दीक्षार्थी को पढाय्ााए तत्पश्चात अहिंसा ध्वज और ओगा प्रदान कियाए साथ ही पात्र्ाए ग्रंथ इत्य्ाादि भी प्रदान किए गए। दीक्षाविधि पश्चात् नवदीक्षिता के षिखा का लोच महासाध्वी प्रियदर्षना व साध्वी रत्नज्योति द्वारा किया गया। जब दीक्षार्थी को संय्ाम प्रदान किय्ाा जा रहा था तब पांडाल में उपस्थित प्रत्य्ोक श्रावक की आंखें नम थी वहीं परिवारजनों के चक्षुओं से हर्ष के आंसू प्रवाहित हो रहे थे। इससे पूर्व समारोह का शुभारंभ नवकार मंत्र्ा महास्तुति से हुआ।