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श्रेय:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम और बहुत बहुत हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों हम आपको अपने लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से भारत के दिव्य तीर्थों, धामों और मंदिरों का अनवरत दर्शन करवाते हैं। आज हम जिस सुप्रसिद्ध प्राचीन मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं वो एक ऐसा शिव मंदिर है जो न केवल पांडवों द्वारा स्थापित महाभारत कालीन मंदिर है अपितु इस मंदिर के गर्भगृह में विराजमान शिवलिंग, धराधाम में प्रतिष्ठित 52 अनोखे एवं दुर्लभ शिवलिंगों में से एक है। भक्तो हम बात कर रहे हैं महादेवा के नाम से प्रसिद्ध बाराबंकी के लोधेश्वर महादेव मंदिर की!
मंदिर के बारे में:
भक्तो लोधेश्वर महादेव मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बाराबंकी, रामनगर तहसील से उत्तर दिशा में बाराबंकी-गोंडा मार्ग से बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर दूर, महादेव गाँव में घाघरा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 45 किमी है। इस मंदिर के बारे लोगों की मान्यता यह है कि यहाँ विराजमान लोधेश्वर महादेव में साक्षात् देवाधिदेव निवास करते हुए अपने भक्तों का कल्याण कर रहे हैं। इसीलिए शिव आराधना दिनों और पर्वों में शिवभक्तों का ताता लग जाता है।
बाराबंकी का प्राचीन नाम व् इतिहास:
भक्तों ‘पूर्वांचल के प्रवेश द्वार’ की संज्ञा प्राप्त बाराबंकी का नाम पुराणों में “वाराह वन” तह “बानह्न्या” बताया गया है जो कालांतर अपभ्रंश होकर बाराबंकी हो गया।प्राचीन समय में यह सूर्यवंशी राजाओं के राज्य का हिस्सा था, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। भगवान श्रीराम और उनके पिता चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ इसी वंश के थे। इतना ही नहीं इस पावन भूमि को अनेकों ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों की तपस्थली होने का गौरव प्राप्त है। उनके कुलगुरू महर्षि वशिष्ठ ने ‘सतरिख’ नामक स्थान में भगवान् राम सहित अनेकों सूर्यवंशी राजकुमारों को उपदेश एवं शिक्षा प्रदान की थी।
मंदिर का इतिहास:
भक्तो मान्यता है कि बाराबंकी स्थित लोधेश्वर महादेव जी का मंदिर महाभारत काल से पूर्व हजारों वर्ष पुराना है। क्योंकि इस मंदिर का इतिहास पांडवों सम्बद्ध बताया जा रहा है। यद्यपि इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
शिवलिंग की प्राकट्य कथा:
भक्तो बाराबंकी स्थित लोधेश्वर महादेव के प्राकट्य को लेकर एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार- महाभारत के पश्चात भगवान शिव को एक बार फिर पृथ्वी पर प्रकट होने की इच्छा हुई। तब भगवान् शिव ने एक रात सरल, दयालु, विद्वान और परम शिवभक्त गरीब ब्राह्मण किसान पंडित लोधेराम अवस्थी को सपनों में उसे दर्शन दिये और अपना मंतव्य प्रकट कर दिया। पंडित लोधेराम अवस्थी लोधेराम संतानविहीन थे, अतः अपने सभी काम वो खुद ही करते थे। प्रातःकाल जब वो खेत में सिंचाई कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि सिंचाई का सारा पानी पृथ्वी में बने एक छोटे से गड्ढे में जाकर गायब हो रहा है। वो उस गड्ढे को पाटने लगे। लेकिन दिनभर कठोर परिश्रम के पश्चात् भी वो गड्ढा पाटने में सफल नहीं हो सके। थक हार कर घर रात को अपने घर लौट गए।
भक्तों रात में सोते समय लोधेराम अवस्थी को पुनः भगवान् शिव का दर्शन हुआ। भगवान् शिव ने लोधेराम से कहा कि “जिस गड्ढे में जहाँ पानी गायब हो रहा है, वहां मेरा स्थान है, तुम मुझे वहीं स्थापित करो, इससे मुझे तुम्हारे नाम से प्रसिद्धि मिलेगी”। अगले दिन लोधेराम उस गड्ढे की खुदाई करने लगे। खुदाई करते समय उनका फावड़ा किसी कठोर वस्तु से टकराया। लोधराम ने मिटटी हटाकर देखा तो वहां एक दिव्य शिवलिंग दिखाई दिया। जिसपर एक घाव सा बन गया था और उस घाव से रक्त स्राव हो रहा था। शिवलिंग पर घाव का निशान आज भी है। ये सब देखते हुए लोधेराम शिवलिंग बाहर निकालने हेतु अनवरत खुदाई जारी रखी, पर शिवलिंग निकालने में असफल रहा। तब लोधराम ने शिवलिंग को उसी अवस्था में छोड़ उसी स्थान पर मंदिर निर्माण किया। इस मंदिर में विराजमान शिव जी लोधे के ईश्वर के नाम से जाना जाने लहै। जो आज लोधेश्वर नाम से प्रसिद्ध है। भक्तों कालांतर भगवान् शिव की कृपा से संतानविहीन ब्राह्मण लोधेराम अवस्थी को, चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। जिनके नाम पर आज भी यहाँ महादेवा, लोधौरा, गोबरहा और राजनापुर के नाम से चार गाँव विद्यमान हैं।
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏
इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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