बहुत अच्छे कर्मों के प्रभाव से महान गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे व्यर्थ न जाने दें। मैं तो बचपन से ही उस्ताद अकरम खान साहब को अपने भीतर गुरु स्वरूप मानता आया हूं। प्रत्यक्ष रुप में गुरु कब मिलेंगे नहीं मालूम। ये भी साधक की एक परीक्षा है। फिलहाल जो कुछ भी ज़रा सा तबले से बोलचाल है उसका रियाज़ करते रहने ही मेरा मकसद है। मेरा संगीत से नाता बहुत गहरा है ज्ञान भले ही मुझे बहुत अल्प है। तबला मेरे हृदय में बसता है। बड़ा ही भावुक क्षण होता होगा जब गुरु गंडा बांधकर साधक को जन्मों की प्रतीक्षा से मुक्त कर देते हैं। साधना निरंतर चलती रहती है गुरु के चरणों में रहकर, उनका आशीर्वाद पाकर। 💖💖🙏🙏