वामन देव जीव गोस्वामी और मीरा की अद्भुत कथा || HH Bhakti Ashraya Vaishnava Maharaj

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My Ashraya

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Күн бұрын

Пікірлер: 70
@mannusharma7260
@mannusharma7260 5 жыл бұрын
H H bhakti ashraya Vaishnav Maharaj ki jai🙌🙌
@shubhamjoshi601
@shubhamjoshi601 6 жыл бұрын
His holiness bhakti ashraya vaishnav swami maharaj ji ki jai
@karanshadmaal2734
@karanshadmaal2734 3 жыл бұрын
Hare krishna Hare krishna krishna krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare
@Kishan.Kapila
@Kishan.Kapila 7 ай бұрын
HH Bhakti Vashnav Ashrya Maharaaj Jii Ki Jaiiii❤❤❤❤
@laharsarkar2214
@laharsarkar2214 5 жыл бұрын
Excellent prabachan 🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
@vikashsinghchauhan2686
@vikashsinghchauhan2686 3 жыл бұрын
Hare krishna prabhu ji dandwat pranaam 🙏🙏🙏🙏🙏
@rishisharma2199
@rishisharma2199 2 жыл бұрын
Hari Bol Jay
@manisharathi6085
@manisharathi6085 6 жыл бұрын
Mind blowing lecture..thank you maharaj
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
भक्तिरत्नाकर में जीव के वाल्य-चरित्र का सुन्दर वर्णन है। वे ऐसा कोई खेल ही न खेलते, जिसका सम्बन्ध श्रीकृष्ण से न हो।
@joynaskar9214
@joynaskar9214 6 жыл бұрын
Osadharon.... hare Krishna...
@vashisht8667
@vashisht8667 6 жыл бұрын
*_हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे_* 🐚 *_हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे_*
@anikettandi8228
@anikettandi8228 3 жыл бұрын
🙏🙏🙏हरे कृष्ण🙏🙏🙏 🙏🙏🙏राधे राधे🙏🙏🙏
@shalinigupta6410
@shalinigupta6410 6 жыл бұрын
Very nice , please give this bliss always
@reetasachdeva9890
@reetasachdeva9890 4 жыл бұрын
*हरे कृष्ण महाराज जी द॑डवत प्रणाम स्वीकार करने की कृपा करें युधिष्ठिर प्राण दास विजय नगर दिल्ली*
@rameshgc2793
@rameshgc2793 5 жыл бұрын
Hare Krishna Guru Dev
@anjusharma-rn3le
@anjusharma-rn3le 3 жыл бұрын
Jai Shree Radhey Krishna Swamiji
@sumanaradhadevidasi5323
@sumanaradhadevidasi5323 5 жыл бұрын
Hare Krishna
@हरिदास-ड2म
@हरिदास-ड2म 5 жыл бұрын
Hare Krishna ....parbhu jee..
@muditatiwari06
@muditatiwari06 4 жыл бұрын
Prabhu ji is awesome
@akashnalinde9832
@akashnalinde9832 3 жыл бұрын
Hare Krishna🙏🙏 ❤❤📿📿
@jyotikapoor2783
@jyotikapoor2783 4 жыл бұрын
hare krishna thanks maharaj
@rakeshcyclestor
@rakeshcyclestor 4 жыл бұрын
Hare Krishna hare Krishna Krishnan hare hare hare Ram hare Ram Ram Ram hare hare
@ramakantaappato
@ramakantaappato 6 жыл бұрын
hare krishna
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
एक दिन देखिल अलक्षित। श्रीकृष्ण चैतन्य बलि हइला मूर्च्छित॥ धरनी लोटाय, धैर्य धरन न जाय। मुख, वक्ष भासे दुइ नेत्रेर धाराय॥
@bharatbhushan9669
@bharatbhushan9669 6 жыл бұрын
Dandwat Parnam or g
@muditatiwari06
@muditatiwari06 4 жыл бұрын
Amazing lecture
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
इसलिए रूप सनातन के अन्तर्धान के पश्चात् जीव गोस्वामी का व्रज मण्डल के अधिनायक के रूप में उभर आना स्वाभाविक था।
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
सनातन गोस्वामी को श्रीकृष्ण ने जो गोवर्धनशिला प्रदान की थी, वह भी उनके अप्राकट्य के पश्चात् जीव गोस्वामी राधादामोदर के मन्दिर में ले आये थे। वह शिला आज भी वहाँ वर्तमान है।
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
जीव गोस्वामी और वल्लभ भट्ट [13]'भक्तिरत्नाकर' और 'प्रेमविलास' में उल्लेख है कि जब रूप गोस्वामी भक्तिरसामृतसिन्धु की रचना में लगे थे, दिग्विजयी श्रीवल्लभ भट्ट आये उनसे मिलने। उस समय जीव गोस्वामी उनके निकट बैठे पंखा कर रहे थे। रूप गोस्वामी ने उन्हें आदर पूर्वक आसन दिया कुछ वार्तालाप के पश्चात् वल्लभ भट्ट भक्तिरसामृतसिन्धु के पन्ने उलट कर देखने लगे। उन्हें निम्नलिखित श्लोक में 'पिशाची' शब्द का प्रयोग खटका- 'भुक्ति-मुक्ति-स्पृहा यावत् पिशाची हृदि वर्तते। तावद्धक्ति सुखस्यात्र कथमम्युदयो भवेत?[14] -जब तक भुक्ति-मुक्ति स्पृहारूपी पिशाची हृदय में वर्तमान रहती है, तब तक भक्ति सुख का उदय होना सम्भव नहीं।" उन्होंने पिशाची' शब्द श्लोक से निकाल कर इस प्रकार उसका संशोधन करने की बात कही- "व्याप्नोति हृदयं यावद्भुक्ति-मुक्ति स्पृहाग्रह" रूप गोस्वामी ने उनके प्रति श्रद्धा और अपने दैन्य के कारण संशोधन सहर्ष स्वीकार कर लिया। जीव को उनका संशोधन नहीं जंचा। उन्हें एक नवागत व्यक्ति का गुरुदेव जैसे महापण्डित और शास्त्रज्ञ की रचना का संशोधन करने का साहस भी पण्डितों के शिष्टाचार के प्रतिकूल लगा। क्रोधाग्नि उनके भीतर सुलगने लगी। पर गुरुदेव उस संशोधन को स्वीकार कर चुके थे, इसलिए वे उनके सामने कुछ न कह सके। उनके परोक्ष में उनसे तर्क द्वारा निपट लेने का निश्चय कर चुपचाप बैठे रहे। वे क्या जानते थे कि जिन्होंने संशोधन सुझाया है वे कोई साधारण व्यक्ति नहीं, एक दिग्विजयी पण्डित हैं। थोड़ी देर बाद जब वल्लभ भट्ट यमुना नदी स्नान को गये, तो वे भी उनके वस्त्रादि लेकर उनके पीछे पीछे गये। कुछ दूर जाकर क्रुद्ध और कठोर स्वर में बोले-"श्रीमान् आपने भक्ति रसामृतसिन्धु में जो संशोधन सुझाया वह ठीक नहीं। गुरुदेव ने केवल दैन्यवश उसे स्वीकार कर लिया है।" पण्डित हक्का-वक्का सा तरुण की ओर देखते रह गये। कुछ अपने आपको सम्हालते हुए बोले-"क्यों भाई मुक्ति को पिशाची कहना तुम्हें अच्छा लगता है? मुक्ति बहुत से साधकों की काम्य-वस्तु और सिद्धो की चिरसंगिनी है, शोक-नाशिनी और आनन्ददायिनी है। उसकी पिशाची से तुलना करना अनुचित नहीं है?" जीव ने विनम्रतापूर्वक कहा-" आचार्य! मुक्ति को पिशाची कहना अनुचित हो सकता है। पर उस श्लोक में मुक्ति को पिशाची कहा ही कब गया है? पिशाची कहा गया है मुक्ति की स्पृहा को, जो यथार्थ है। स्पृहा या वासना चाहे जैसी हो, उसका भक्त के हृदय में कोई स्थान नहीं। यदि वह भक्त के हृदय में प्रवेश कर जाती है, तो उसके भक्तिरस का शोषण कर लेती है और उसे उसी प्रकार अशान्त बनाये रहती है, जिस प्रकार पिशाची किसी मनुष्य के भीतर प्रवेश कर उसे अशान्त बनाये रखती है। शान्त तो केवल कृष्ण भक्त है, जो कृष्ण सेवा के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते। भुक्ति-मुक्ति कामी जितने भी हैं, सब पिशाची-ग्रस्त व्यक्ति की तरह ही अशान्त हैं। श्लोक में पिशाची शब्द का प्रयोग किये बिना भी काम तो चल सकता था, पर उसके बगैर श्लोक का भाव प्रभावशाली ढंग से स्पष्ट न होता। इसलिए 'पिशाची' शब्द का उसमें रहना ही ठीक है। आप....। जीव आवेश में यह सब कहे जा रहे थे। पर आचार्यपाद का ध्यान जमा हुआ था, उनके पहले वाक्य पर ही। वे उसके परिपेक्ष में श्लोक को फिर से परखते हुए मन ही मन कह रहे थे-"नवयुवक ठीक ही तो कह रहा है। श्लोक में पिशाची मुक्ति की स्पृहा को कहा गया है, न कि मुक्ति को। मेरा मन मुक्ति के प्रसंग मात्र में 'पिशाची' शब्द के प्रयोग से इतना उद्विग्न हो गया था कि 'स्पृहा' की ओर ध्यान ही नहीं गया। जीव की बात काटते हुए वे बोले-"तुम ठीक कहते हो। श्लोक में 'पिशाची' मुक्ति की वासना को ही कहा गया है। भक्तों के लिए मुक्ति की वासना पिशाची के ही समान है।" प्रतिभाधर तरुण पण्डित की सूक्ष्म दृष्टि की मन ही मन सराहना कहते हुए उन्होंने जमुना स्नान किया। स्नान के पश्चात् फिर गये रूप गोस्वामी कुटी पर। उल्लसित हो उनसे पूछा-"वह जो अल्पवयस्क पण्डित आपके पास बैठे थे, वे कौन थे? उनका परिचय प्राप्त करने के उद्देश्य से ही आपके पास लौटकर आया हूँ- "अलप-वयस जे छिलेन तोमा-पाशे। ताँर परिचय हेतु आइनू उल्लासे॥"[15] रूप गोस्वामी ने कहा-"वह मेरा शिष्य और भतीजा है। अभी कुछ ही दिन हुए देश से आया है।" "बड़ा प्रतिभाशाली और होनहार है वहा" उन्होंने श्लोक के संशोधन के कारण उसके रोष का सब वृतान्त कह सुनाया। अन्त में कहा-"उसका दोष बिल्कुल नहीं था भूल मेरी ही थी। मेरा ध्यान 'पिशाची' शब्द में इतना उलझ गया था कि 'स्पृहा' का ध्यान ही न आया। अब मेरा अनुरोध है कि आप श्लोक को उसी प्रकार रहने दें। उसमें कोई परिवर्तन न करें।
@rishishukla2412
@rishishukla2412 4 жыл бұрын
हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे राम कृष्ण
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
मीराबाई आई जीव गोस्वामी के दर्शन करने। जीव गोस्वामी के किसी शिष्य ने उनसे कहा-"वे स्त्री का मुख नहीं देखते।" मीराबाई ने उत्तर दिया-"मैं तो जानती थी कि वृन्दावन में गिरिधर लाला ही एकमात्र पुरुष है, और सब स्त्री हैं। मैं नहीं जानती थी कि यहाँ जीव गोस्वामी भी एक पुरुष है, जो स्त्रियों का मुख नहीं देखते।" जीव गोस्वामी ने जब कुटिया के भीतर से ही यह सुना तो प्रसन्न हो बाहर निकल आये और मीराबाई से मिले।
@sugamrajpoot6392
@sugamrajpoot6392 5 жыл бұрын
जय जीव
@neerajvats4319
@neerajvats4319 6 жыл бұрын
Jai ho vaman bhagwan !!!
@upendraupendra5020
@upendraupendra5020 2 жыл бұрын
horibol
@bharatbhushan9669
@bharatbhushan9669 6 жыл бұрын
Thanks for update lecture with special day or g
@muditatiwari06
@muditatiwari06 4 жыл бұрын
Hariii bol
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
1558 के बाद जब रूप गोस्वामी अप्रकट हो चुके थे। यह सूचना वृन्दावन शोध संस्थान में सुरक्षित एक दस्तावेज की नक़ल से मिलती है, जिसके अनुसार जीव गोस्वामी ने इस मन्दिर के लिए ज़मीन 1558 में आलिषा चौधरी नाम के एक व्यक्ति से ख़रीदी थी।
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
वे भिक्षा के लिए भी न जाते दूर ग्राम से आकर यदि कोई कुछ भिक्षा दे जाता तो उसे ले लेते। नहीं तो कई कई दिन तक उपवासी रहते या जमुना जल पीकर ही रह जाते। कभी भिक्षा में प्राप्त गेहूँ का चूर्ण कर उसे पानी में मिलाकर पी जाते- बहु यत्ने किण्चित् गोधूमचूर्ण लैया। करये भक्षण ताहा जले मिशाइया॥[18]
@muditatiwari06
@muditatiwari06 4 жыл бұрын
Jaii
@muditatiwari06
@muditatiwari06 4 жыл бұрын
❤🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
@mukundjoripatil4750
@mukundjoripatil4750 4 жыл бұрын
कृपया षड गोस्वामी के चरीञ के बारेमे कथा करे..
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
जीव गोस्वामी की रचनाएँ जीव गोस्वामी जैसे तीक्ष्ण बुद्धि सम्पन्न और मेधावी थे, वैसे ही सुयोग्य और भारत विख्यात पण्डितों से शास्त्राध्ययन करने का उन्हें सुअवसर प्राप्त हुआ था। सनातन और रूप का पाण्डित्य, कवित्व और भक्ति-शास्त्रों का सम्यक् ज्ञान उन्हें पैतृक सम्पत्ति के समान उनसे उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था। ग्रन्थ रचना-काल में उनकी सहायता करते समय भक्ति के क्षेत्र में उनके शीर्ष स्थानीय ग्रन्थों का हार्द उन्हें हस्तामलकवत् उपलब्ध हुआ था। उनका जो कार्य बाक़ी रह गया था उसे पूरा करने के लिए वे सब प्रकार से उपयुक्त थे।
@shubh8032
@shubh8032 5 жыл бұрын
matsya avtar das हरे कृष्ण प्रभु। बहोत बहोत धन्यवाद आपने comments में जीव गोस्वामी की अनेक सुंदर घटनाओं से हमें परिचित करवाया। प्रभु मुझे जीव गोस्वामी के बारे में और पढ़ना है। मुझे जीव गोस्वामी के बारे में और दिव्य जानकारी कहाँ से प्राप्त हो सकती है। कृपया मार्गदर्शन कीजिये।
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
निर्जन में कृच्छ् साधना जीव वृन्दावन से बहुत दूर निर्जन वन प्रान्त में एक पर्णकुटी निर्माण कर उसमें रहने लगे। आरम्भ किया कठोर वैराग्यपूर्ण कृच्छ् साधना का जप-ध्यानमय जीवन। संकल्प किया कि जब तक गुरुदेव के मनोभाव के अनुकूल अपने जीवन में आमूल परिवर्तन न कर लेंगे, तब तक उस निर्जन कुटी को छोड़ लोकालय में प्रवेश न करेंगे। वे भिक्षा के लिए भी न जाते दूर ग्राम से आकर यदि कोई कुछ भिक्षा दे जाता तो उसे ले लेते। नहीं तो कई कई दिन तक उपवासी रहते या जमुना जल पीकर ही रह जाते। कभी भिक्षा में प्राप्त गेहूँ का चूर्ण कर उसे पानी में मिलाकर पी जाते- बहु यत्ने किण्चित् गोधूमचूर्ण लैया। करये भक्षण ताहा जले मिशाइया॥[18] इस प्रकार जीवन निर्वाह करते बहुत दिन हो गये। शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया। एक दिन अकस्मात् सनातन गोस्वामी उन्हें खोजते हुए उधर आ निकले। उनकी दशा देख उनका हृदय द्रवित हो गया। वृन्दावन जाकर रूप गोस्वामी से उन्हें बुला लेने का अनुरोध करना चाहा पर सहसा इस सम्बन्ध में कुछ न कहकर उनसे पूछा- "तुम्हारे भक्तिरसामृतसिन्धु का काम कहाँ तक हो पाया है?" "काम तो बहुत कुछ हो गया है। पर अब तक कभी का समाप्त हो लेता यदि जीव होता। उसे मैंने किसी अपराध के कारण अपने पास से हटा दिया हैं", रूप गोस्वामी ने उत्तर दिया। सनातन गोस्वामी ने अवसर पाकर तुरन्त कहा-"मैं सब जानता हूँ। उसे मैं देख कर आया हूँ। अनाहार, अनिद्रा, उपवास और कठोर तपस्या के कारण उसका शरीर इतना जर्जर हो गया है कि उसकी ओर देखा भी नहीं जाता। बस प्राण किसी प्रकार जाने से रुक रहे हैं। तुमने आजन्म महाप्रभु के जीवे दया नामे रुचि' के सिद्धान्त का पालन किया है। क्या अपने ही जीव को अपनी दया से वंचित रखोगे?" -रूप गोस्वामी ने गुरुवत् ज्येष्ठ भ्राता का इंगित प्राप्त कर जीव को क्षमा करने का निश्चय किया। उसी समय किसी के हाथ पत्र भेज कर उन्हें अपने पास बुला लिया। जीव का प्रायश्चित्त तो हो ही चुका था। उनके स्वभाव में मनोवाच्छित परिवर्तन भी हो गया था। गुरुदेव की करुणा प्राप्त कर उन्होंने नया जीवन लाभ किया। वास्तव में देखा जाय तो यह सारी घटना प्रभु की प्रेरणा से ही हुई थी। इसमें दोष किसी का नहीं था। इसके द्वारा प्रभु को भक्त-साधकों को हर प्रकार की कामना वासना यहाँ तक कि मुक्ति तक की वासना से सावधान करना था। साथ ही वल्लभभट्ट के संशोधन, जीव गोस्वामी के क्रोध और रूप गोस्वामी के शासन द्वारा भक्तों के कल्याण के लिए आदर्श स्थापित करना था वल्लभ भट्ट से भूल करवा कर और उसे स्वीकार करवा कर उनके औदार्य का, जीव से संशोधन का प्रतिवाद करवाकर गुरु-मर्यादा की रक्षा करने का, रूप गोस्वामी से संशोधन स्वीकार करवा और जीव को दण्ड दिलवाकर उनके दैन्य का। इस सम्बन्ध में यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जीव गोस्वामी ने भक्तिरसामृतसिन्धु की अपनी टीका में उक्त श्लोकी व्याख्या करते समय वल्लभाभट्ट के संशोधित पाठकी भी सराहना की है। उन्होंने लिखा है- "व्याप्नोति हृदयं यावद्भुक्ति-मुक्ति स्पृहाग्रह" इति पाठान्तरन्तु सुश्लिष्टम्।
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
कृपा के सागर श्रीरूप गोस्वामी ने श्री राधा दामोदर देव को प्रकट कर सेवार्थ जीव गोस्वामी को प्रदान किया। भक्तिरत्नाकर में यह भी उल्लेख है कि राधादामोमर ने स्वप्न में रूप गोस्वामी को उन्हें जीव गोस्वामी को समर्पण करने की आज्ञा दी थी।
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
"Why we should deny, that 'God is impersonal'? God is person. Kṛṣṇa came." Kṛṣṇa exhibited His godly potencies, energies, when He was present. There is no... In the history you won't find another second person like Kṛṣṇa in the whole history of the world. Apart from other points of view, Bhagavad-gītā, that is admitted, spoken by Kṛṣṇa, such deep, profound knowledge-there is no second imitation or second copy like Bhagavad-gītā in the whole world.
@kamalkantmishra7955
@kamalkantmishra7955 4 жыл бұрын
ADHBHUT ,AVISMARNEEY
@krishnam6385
@krishnam6385 6 жыл бұрын
Who was the spiritual master of meera?
@myashraya
@myashraya 6 жыл бұрын
Video m bataya gaya hai na, JIva Goswami
@deepakkumawat1628
@deepakkumawat1628 6 жыл бұрын
rai das kon the
@naresh9888
@naresh9888 5 жыл бұрын
hari
@naresh9888
@naresh9888 5 жыл бұрын
do tarah ke adhyatmik guru hote hai 1 Diksha guru hote hai jo diksha tatha shiksha dete hai wo जिव goswami the aur wo dusare guru hote hai shiksha guru jo bhagwad bhakti ki shiksha dete hai 1 vyakti ke anek shiksha guru ho sakte hai
@naresh9888
@naresh9888 5 жыл бұрын
rai das tatha tulsi das ji mira bai ke shiksha guru the
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
जीव और मीराबाई जीव गोस्वामी के साथ मीराबाई के साक्षात् की कथा प्रसिद्ध है। प्रियादास ने भक्तमाल की टीका में इसका उल्लेख इस प्रकार किया है- वृन्दावन आई, जीव गुसाईजी से मिली झिली, तिया मुख देखिवे पन लै छुटायौ है। मीराबाई आई जीव गोस्वामी के दर्शन करने। जीव गोस्वामी के किसी शिष्य ने उनसे कहा-"वे स्त्री का मुख नहीं देखते।" मीराबाई ने उत्तर दिया-"मैं तो जानती थी कि वृन्दावन में गिरिधर लाला ही एकमात्र पुरुष है, और सब स्त्री हैं। मैं नहीं जानती थी कि यहाँ जीव गोस्वामी भी एक पुरुष है, जो स्त्रियों का मुख नहीं देखते।" जीव गोस्वामी ने जब कुटिया के भीतर से ही यह सुना तो प्रसन्न हो बाहर निकल आये और मीराबाई से मिले।
@neerajvats4319
@neerajvats4319 6 жыл бұрын
Hare Krishna. कृपया इस पर एक video बना दो प्रभु जी।
@myashraya
@myashraya 6 жыл бұрын
Are baba link bheja to tha. Already hai video Ab aur ku banayee.
@neerajvats4319
@neerajvats4319 6 жыл бұрын
@@myashraya agar kisi ki mira charitra ko aur janne ki icha ho to kya kare ? Koi baat nahi.
@myashraya
@myashraya 6 жыл бұрын
Ok then we will try for this.
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
व्रजमण्डल का अधिनायकत्व 12/13 वर्ष वाद वृन्दावन के आकाश पर छा गयी दुर्दैव की कालिमा। सनातन गोस्वामी नित्यलीला में प्रवेश कर गये। रघुनाथभट्ट और रूप गोस्वामी ने शीघ्र अनुगमन किया। काशी के भारत विख्यात सन्न्यासी प्रकाशानन्द सरस्वती, जो महाप्रभु की कृपा लाभ करने के पश्चात् प्रबोधानन्द सरस्वती के नाम से वृन्दावन में वास कर रहे थे, पहले ही अन्तर्धान हो चुके थे। महाप्रभु के प्रधान परिकरों में जो बच रहे उनमें जीव को छोड़ और सब-लोकनाथ गोस्वामी, गोपालभट्ट गोस्वामी, रघुनाथदास गोस्वामी और 'चैतन्यचरितामृत' के रचयिता कृष्णदास कविराज आदि बहुत वृद्ध हो जाने के कारण लोकान्तर यात्रा की प्रतीक्षा कर रहे थे। ऐसे में महाप्रभु द्वारा प्रचारित भक्ति-धर्म की जिस विजय पताका को रूप सनातन ने फहराया था, उसे ऊँचा बनाये रखने का भार आ पड़ा जीव गोस्वामी पर। उन्होंने सब प्रकार से इसके योग्य अपने को सिद्ध किया। उनके पाण्डित्य की ख्याति पहले ही चारों ओर फैल चुकी थी। जो दिग्विजयी पण्डित आते वृन्दावन शास्त्रविद् वैष्णवों के साथ तर्क-वितर्क करने उन्हें वैष्णव-समाज के मुखपात्र श्री जीव गोस्वामी के सम्मुख जाना पड़ता। उन्हें उनके साधन बल और असाधारण पाण्डित्य के कारण निस्प्रभ होना पड़ता। बहुत से भक्त और जिज्ञासु आते भक्ति-धर्म में दीक्षा ग्रहण करने या भक्ति-शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने। सबकी जीव गोस्वामी के चरणों में आत्म समर्पण करना होता। सबको वहाँ आश्रय मिलता। बहुत से लेखकों और टीकाकारों की जीव गोस्वामी का मुखापेक्षी होना पड़ता। साधनतत्त्व की मीमांसा हो या किसी शास्त्र की व्याख्या, जीव गोस्वामी के अनुमोदन बिना उसे वैष्णव-समाज में मान्यता प्राप्त करना असम्भव होता। इसलिए रूप सनातन के अन्तर्धान के पश्चात् जीव गोस्वामी का व्रज मण्डल के अधिनायक के रूप में उभर आना स्वाभाविक था।
@matsyaavtardas2127
@matsyaavtardas2127 6 жыл бұрын
जीव और माँ जाह्नवा भक्तिरत्नाकर में जीव के साथ श्रीनित्यानन्द प्रभु की पत्नी माँ जाह्नवा के साक्षात्कार का भी उल्लेख है। जाह्नवा का वृन्दावन गमन खेतरी उत्सव के पश्चात् सन् 1576-77 के आस पास माना जाता है। वे जब वृन्दावन गयी तो जीव गोस्वामी ने उन्हें घूम-घूमकर व्रजमण्डल के दर्शन कराये। उनकी आज्ञा से वृहद्भागवतामृतादि रूप-सनातन के कुछ ग्रन्थ भी पढ़कर सुनाये, जिन्हें सुन वे इतना भावविह्नल हो गयीं कि उन्हें अपने आपको सम्हालना दुष्कर हो गया- सुनिते गोसाईर ग्रन्थ उत्कन्ठित मन। श्रीजीव गोस्वामी कराइलेन श्रवण॥ वृह्रदागवतामृतादिक श्रवणेते। हइला विह्वल प्रेमे नारे स्थिर हैते॥[25]
@shankarpujari4101
@shankarpujari4101 4 жыл бұрын
Vg
@hariharakrsnacaitanyadas3994
@hariharakrsnacaitanyadas3994 5 жыл бұрын
Dandwat Pranaam prabhuji 🙇🙏
@vashisht8667
@vashisht8667 6 жыл бұрын
*_हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे_* 🐚 *_हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे_*
@sonalibiswas1457
@sonalibiswas1457 3 жыл бұрын
Hare krishna ❤️❤️
@rishishukla2412
@rishishukla2412 4 жыл бұрын
हरे राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण
@SpecialAatmaen
@SpecialAatmaen 4 жыл бұрын
Hare Krishna,
@drshubhamgupta316
@drshubhamgupta316 6 жыл бұрын
Jai
@vashisht8667
@vashisht8667 6 жыл бұрын
*_हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे_* 🐚 *_हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे_*
@rishishukla2412
@rishishukla2412 4 жыл бұрын
हरे कृष्ण हरे राम
@dharmendarshah3542
@dharmendarshah3542 6 жыл бұрын
Hare Krishna hare Krishna
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