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वरुण गायत्री
ॐ जल बिम्बाय विद्महे। नील पुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।
वरुण गायत्री-ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।
यह मंत्र प्रेम भावना जागृत होती है, भावनाओ का उदय होता हैं।
वरुण-सूक्त (ऋग्वेदः---१.२५)
ऋग्वेद में प्रथम मण्डल का २५ वाँ सूक्त हैः--वरुण सूक्त,
वरुण-सूक्त में कुल कितने मन्त्र हैः---११
वरुण-सूक्त का ऋषि है---शुनः शेप ।
वरुण-सूक्त का देवता हैः--वरुण देव ।
वरुण शब्द की उत्पत्तिः---वृञ् वरणे धातु से वरणीयः ।
वृञ् धातु का अर्थ है-ः--आच्छादित करना या आवृत्त करना ।
वरुण का निर्वचन हैः--वरुणो वृणोतीति सतः ।
वरुण-सूक्त का छन्द हैः---गायत्री (२४ अक्षर) ।
वरुण देवता का स्थान हैः---द्युलोक ।
भौतिक नियमों का नियन्ता कौन हैः--वरुण ।
वरुण का एक अन्य नाम हैः---धृतव्रत ।
सूर्य, अग्नि और जल की रचना किसने की हैः---वरुण ने ।
"उत्तम-शासक" किसे कहा गया हैः---वरुण को ।।
वरुण का नेत्र हैः--सूर्य ।
सूर्य की तरह ही किसका रथ देदीप्यमान हैः---वरुण का ।
वरुण का प्रमुख अस्त्र क्या हैः---"वज्र" और "पाश" ।।
वरुण का प्रधान कार्य क्या हैः---जल बरसाना ।।
ब्रह्माण्ड का नैतिक अध्यक्ष कौन हैः--वरुण ।।
वरुण जिसे दण्डित करता है, उसे कौन-सा रोग होता हैः---जलोदर ।
सातवाँ आदित्य किसे कहा जाता हैः---वरुण को ।
"क्षत्रश्रिय" किसे कहा जाता हैः--वरुण को ।
"दूतदक्ष" किसका अन्य नाम हैः--वरुण का ।
"उरुचक्षसः" किसे कहा जाता हैः---वरुण को ।
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