विष्व बैंक पोषित परियोजना के तहत चेरी एक्सपर्ट डा मिल्जन ने दी जानकारी | cherry fruit plants 2022

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2 жыл бұрын

बागवानी विभाग रोहरु से विषय विशेषज्ञ डॉ समीर सिंह राणा,उद्यान विकास अधिकारी डा कुशाल सिंह मेहता, डा यशवंत बागिंटा, डा अशोक मेहता , डा प्रदीप जोगटा, डा महेश कुमार, डा प्रियंका शर्मा , डा अंशु भारद्वाज उपस्थित थे इस प्रायोगिक परीक्षण शिविर में नावर क्षेत्र के खदराला, काडीवन,कुठारी से 100 से ज्यादा चेरी बागवानों ने भाग लिया
चेरी की आधुनिक एवम सघन खेती कैसे करें
विश्व बैंक पोषित परियोजना के तहत पिछले पांच वर्षो से चेरी की आधुनिक किसमे व् रूट स्टॉक विदेशो से आयात किए जा रहे हैं व् बागवानों को बागवानी में विविधता हेतु उपलब्ध कराए जा रहे हैं
चेरी की खेती विश्व में सबसे अधिक यूरोप और एशिया, अमेरिका, तुर्की आदि देशों में की जाती है| जबकि भारत में इसकी खेती उत्तर पूर्वी राज्यो और हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखंड आदि राज्यों में कि जाती है| चेरी स्वास्थ्य के लिये अच्छा फल माना जाता है| यह एक खट्टा-मीठा गुठलीदार फल है| इसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते है, जैसे- विटामिन 6, विटामिन ए, नायसिन, थायमिन, राइबोफ्लैविन पोटेशियम, मैगनिज, काॅपर, आयरन तथा फस्फोरस प्रचूर मात्रा में पाए जाते है| इसके फल में एंटीआॅक्सीडेट अधिक मात्रा में होता है, जो स्वास्थ के लिये अधिक अच्छा माना जाता है| इसको तीन वर्गो में विभाजित किया जाता है, जैसे-
1. मीठी चेरी जिसे प्रूनस एवियम कहते है, इसकी मूल क्रोमोजोम संख्या एन- 8 है, इसमें दो वर्ग की चेरी शामिल है एक हार्ट और दूसरी बिगारो|
2. खट्टी चेरी जिसका वैज्ञानिक नाम प्रूनस सीरैसस है, इसमें भी दो वर्ग की चेरी शामिल है, जैसे- एक अमरैलो तथा दूसरी मोरैलो|
3. ड्यूक चेरी जो पहले व दूसरे के संकरण से निकली है, यह एक पालीप्लायड चेरी है, जिसकी मूल क्रामोजोम संख्या 2एन- 32 है, सभी चेरी रोजेसी कुल की सदस्य हैं|
उपयुक्त जलवायु
चेरी की खेती समुद्रतल से 2,100 मीटर की ऊँचाई के नीचे सफलतापूर्वक पैदा नहीं की जा सकती|परन्तु कश्मीर और कुल्लू की घाटियों में इसे 1500 मीटर की ऊँचाई पर भी सफलतापूर्वक पैदा किया जा सकता है| गर्मी में वातावरण ठंडा और शुष्क होना चाहिए|
इसे लगभग 120 से 150 दिन तक अच्छी ठंडक यानि 7 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तापमान की आवश्यकता होती है| अतः जिन स्थानों में उक्त दिनो तक 7 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तापमान मिलता है वहीं इसे सफलतापूर्वक पैदा किया जा सकता है|
भूमि का चुनाव
चेरी की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती है| परन्तु इसके लिये रेतीली-टोमट मिट्टी को अच्छा माना जाता है| रेतीले टोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6.0 से 7.5 होना चाहिए| इस मिट्टी में नमी के साथ साथ साथ उपजाऊ होना भी आवश्यक है| चेरी की खेती के फूलों व फलों को पाले से बचाना जरूरी है|
उन्नत किस्में
चेरी की खेती के लिए अनेक किस्में उपलब्ध है, लेकिन व्यवसायिक दृष्टि से उगाई जाने वाली कुछ किस्में इस प्रकार है, जैसे-
जल्दी तैयार होने वाली किस्में- फ्रोगमोर अर्ली, ब्लेक हार्ट, अर्ली राईवरर्स, एल्टन|
मध्य समय में तैयार होने वाली किस्में- बेडफोर्ड प्रोलोफिक, वाटरलू|
देर से तैयार होने वाली किस्में- इम्परर, फ्रैंसिस, गर्वरनर उड|
चेरी की किस्में जिन्हें बिगररेउ और हार्ट समूहों में बांटा गया है, जैसे-
बिगररेउ समूह- इस समूह का चेरी सामान्यतः इसका आकार गोलाकार तथा आमतौर पर फल का रंग अंधेरे से हल्के लाल भिन्न होता है, इसमें संकर किस्में जैसे- लैपिंस, सिखर सम्मेलन, सनबर्ट, सैम और स्टेला आदि है|
हार्ट समूह- इस समूह के तहत चेरी फल दिल का आकार का होता है, और फल का रंग हल्का लाल तथा रेडिस रंग का होता है|
भारत में चेरी की क्षेत्र के आधार पर किस्में इस प्रकार है, जैसे-
हिमाचल प्रदेश- वाइट हार्ट, स्टैला, लैम्बर्ट, पींक अर्ली, तरतरियन, अर्ली रिवर और ब्लैंक रिबलन, रेगीना,ग्लोरी, लेपिन आदि|
जम्मू कश्मीर- बिगरेयस नायर ग्रास, अर्ली परर्पिल, गुनेपोर, ब्लैक हार्ट आदि|
उत्तर प्रदेश- गर्वेनश वुड, बेडफोर्ड, ब्लैक हार्ट आदि|
पौधे तैयार करना
पौधे तैयार बीज के माध्यम से या जड़ कटाई द्वारा किए जाते है| मुख्य रूप से ग्राफ्टिंग पद्धति के माध्यम से चेरी पौधों को लगाया जा सकता है| आमतौर पर बीज अंकुरण के लिए शीतल उपचार की आवश्यकता होती है| आमतौर पर इसके बीज पूरी तरह से पके फल से निकाले जाते हैं| इन बीज को सूखे और ठंडे स्थान पर संग्रहीत किया जाना चाहिए| लगभग एक दिन के लिए इसके बीज को विशेष विधि से भिगोया जाता है|
पौधे ऊपर उठी क्यारियों में लगाए जाते हैं, इन क्यारियों की चैड़ाई 105 से 110 सेंटीमीटर व ऊँचाई लगभग 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, दो क्यारियों के बीच में 45 सेंटीमीटर का अन्तर रखा जाना चाहिए| क्यारियों में पौधों को चार पंक्तियों के बीच में 15 से 25 सेंटीमीटर की दूरी व पौधे की आपसी दूरी सेंटीमीटर रखना आवश्यक है| पौधों की रोपाई दिन के ठंडे समय में की जानी चाहिए|
प्रवर्धन और मूलवृन्त
चेरी की खेती या बागवानी हेतु कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में चेरी का अलेंगिक प्रवर्धक रोपण द्वारा तथा चश्मा चढ़ाकर किया जाता है| रोपण फरवरी में करते है और रिंग चश्मा जून और सितम्बर में चढ़ाते हैं| कश्मीर में चेरी का रोपण मैजर्ड प्रकंद से जो सकर्स निकलते है, उन पर किया जाता है| हिमाचल प्रदेश में इसका पाजा के बीजू पौधों पर रोपण करते है| पाजा के पेड़ जंगली पैमाने पर हिमाचल प्रदेश में उगते हैं, इनके पत्ते गिरते नहीं, अभी हाल ही में प्रूनस कारन्यूटा का भी प्रकंद इस्तेमाल किया गया है| विदेशी विशेषज्ञ डा मिलजन के अनुसार जान्हा पर सिंचाई के साधन नही है बांह पर विगरस रूट स्टॉक महालाब का उपयोग करना चाहिए
नर्सरी पैमाने पर यह सफल साबित हुआ है, फ्रांस और जर्मनी में स्टाक्टन मोरेलो का प्रकंद भी इस्तेमाल किया जाता हैं, खट्टी चेरी के लिए यह एक अच्छा प्रकंद है| सेब की तरह चेरी में अभी कोई बामन किस्म का प्रकन्द विकसित नहीं किया गया है|

Пікірлер: 1
@RohanSingh-qm8zn
@RohanSingh-qm8zn 2 жыл бұрын
Cherry ki cultivation kin kin height / elevations par sambhav hai?
Beautiful gymnastics 😍☺️
00:15
Lexa_Merin
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Beautiful gymnastics 😍☺️
00:15
Lexa_Merin
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