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Vigyan bhairav tantra 33
देखने के संबंध में चौथी विधि:
‘’बादलों के पार नीलाकाश को देखने से शांति को सौम्यता को उपलब्ध होओ।‘’
मैंने इतनी बातें इसलिए बताई कि ये विधियां बहुत सरल है। और उन्हें प्रयोग करके भी तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। और तब तुम कहोगे, ये किस ढंग की विधियां है। तुम कहोगे कि इन विधियों को तो हम अपने आप ही कर सकते है। केवल आकाश को, बादलों के पर नीलाकाश को देखते-देखते कोई शांत हो जाए, आप्तकाम हो जाए।
बादलों के पार नीलाकाश को तुम देखते रह सकते हो, और कुछ भी घटित नहीं होगा। तब तुम कहोगे कि ये कैसी विधियां है।
लेकिन यदि तुम्हें मृत्यु, अर्थवत्ता और सिखावन के तीन सूत्र याद रहें तो यह विधि तुम्हें तुरंत भीतर की तरफ मुड़ने में सहायता देगी।
‘’बादलों के पार नीलाकाश को देखने मात्र से……..।‘’
इस सूत्र से विचारना नहीं, देखना बुनियादी है। आकाश असीम है; उसका कहीं अंत नहीं है। उसे महज देखो। वहां कोई विषय वस्तु नहीं है। यही कारण है कि आकाश चुना गया है। आकाश कोई विषय नहीं है। भाषागत रूप से वह विषय है; लेकिन अस्तित्व में वि कोई विषय नहीं है। विषय वह है जिसका आरंभ और अंत हो। तुम किसी विषय के चारों और घूम सकते हो; लेकिन आकाश की परिक्रमा नहीं कर सकते। तुम आकाश में ही हो, लेकिन, लेकिन तुम आकाश के चारों और घूम नहीं सकते। तुम आकाश के विषय बन सकते हो। लेकिन आकाश तुम्हारा विषय नहीं बन सकता। आकाश में तो तुम झांक सकते हो; उसका कोई अंत नहीं है
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