"विरति - पच्चीसी" | Virti Pachisi |

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Thavva Thhui Mangalam - An ode to the infinite

Thavva Thhui Mangalam - An ode to the infinite

8 ай бұрын

परम पूज्य, आध्यात्म योगी आचार्य प्रवर १००८ श्री रामलाल जी म.सा. द्वारा आत्मचिंतन के क्षणों में मथित नवनीत रूप विरती पच्चीसी के ये अनुपम दोहे जन मानस के जीवन तथा उनके विचारों को पवित्र करने वाले हैं एवं संसार रूपी समुद्र में रहे प्राणियों के प्राणों का उद्धार करने वाले हैं।
कथित देव अरिहंत से, शुद्ध दयामय धर्म।
पुण्य चरण गुरु शरण से, प्रकटा विरति सुमर्म॥
तन मरता तन जनमता, तन को नश्वर जान।
जो तन से उपरत बने, वो पाता सद्ज्ञान॥(1)
शुक्र व शोणित से बना, रक्त माँस अरू मेद।
देह जुदा आत्तम् जुदा, ज्ञानी जाने भेद॥(2)
मन मूरख उसमे रमे, हुई ना जीवन भोर।
भटक रहा अघ भाव से,मिले ना इत उत ठौर॥ (3)
विषय विषैली बैलड़ी, आसक्ति अंध कूप।
ज्ञानी भ्रम न पालता, मूढ़ न जाने रूप॥(4)
मन मोदक खाना नहीं, मिले न उसमें स्वाद।
मन मोदक खाता रहे ,जीवन तस बरबाद॥(5)
रुई लपेटी आग को, जो लेता कर माँय।
जाने हाथ न बच सके, यही सत्य है न्याय॥(6)
मधुर शब्द में मृग फंसा, रूप पतंगा जान।
भ्रमर गंध में जा फंसा, मीन मांस अज्ञान॥(7)
देह चाम मन लोभनी, लोभी मन भरमाय।
विषय राग में जो फंसा, कैसे जान बचाय॥(8)
सर्प जीव को काट ले, औषध देत बचाय।
विषय कटा जन ना बचे, करलो लाख उपाय॥(9)
राग द्वेष में जो फंसा, उसे जान अभिशाप,
शाश्वत सुख ना पा सके, रुकता अपने आप॥(10)
मोह अश्व पर जो चढ़ा, ना तस हाथ लगाम,
कौन बचाये शख्स को, खरी-खरी का काम॥ (11)
प्रेम ना जाने वासना, नहीं वासना प्रेम।
प्रीत अलौकिक राह है, पाले गर सद्नेम॥(12)
मोह तजे ममता तजे, तजे आसक्ति भाव।
दुःख द्वंद्व उसको कहाँ, सदा बसे सुख छांव॥ (13)
तेज विषय तूफान में,जां के उखड़े पैर।
नहीं कल्पना कर सके, कैसे पाए खैर॥(14)
दुःख कातर को सुख कहां, सुख में न दुःख समाय।
मिथ्या रूप अज्ञान है, समकित है सुखदाय॥ (15)
आग लगा विष विषय की, जो चाहे संतोष।
तोय संतोष ना मिले, तौष हजारों कोस॥(16)
रे चेतन तूं समझ ले, अवर न तेरा कोय।
एक धर्म ही शरण है, जो चाहे सो होय॥(17)
अटवी भटका मानवी, रुदन करे मुँह फाड़।
रोना सार्थक है नहीं, ज्यों न खेत के बाड़॥(18)
बचा सके ना मौत से, तीन खण्ड के नाथ।
थावच्चा सुत भाव से, बने स्वयं के नाथ॥(19)
सोने का मृग देखकर, सीता मन भरमाय।
पुरुषोतम श्रीराम भी, इसमें ठोकर खाय॥(20)
मृग तृष्णा संसार है, कभी न बुझती प्यास।
भ्रमित कभी होना नहीं, बनें न आशादास॥ (21)
भरत केवली बन गये, जब जाना निज रूप।
नाथ अनाथी तब बने, जब जाना जग रूप॥ ( 22 )
मोह न मिथिला का जगा, जलता रूप निहार।
मन उद्वेलित ना हुआ, बही न आँसू धार॥(23)
चेतन दुर्लभ चार है, परम अंग ले जान।
मानव तन सुन ना मिले, श्रद्धा संयम मान॥ (24)
राम! जान संसार को, छोड़ मोह का फंद।
आत्म रमण में बढ़ चलो, पा लो परमानंद॥ (25)
ऋत नय अम्बर दृग बरस,माघमास वर तंत।
रचे शहर बालोतरा, पाऊं परमानंद॥
अमृत धार सम विरत के, ये दोहे पच्चीस।
पढ़ो सुनो नित भाव से, पावो पद जगदीश॥

Пікірлер: 36
@sangeetajain2533
@sangeetajain2533
धन्य हुए राम गुरु को पाके ,मन को छुने वाली पच्चीसी, जय गुरु नाना जय गुरु राम 🙏🙏
@HimanshuRanka01
@HimanshuRanka01
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
@vikassurana6138
@vikassurana6138
बहुत ही सुन्दर हम इन्तज़ार करते है 23 तारीख़ का हमारी सोच से बेहतर ओर नई प्रस्तुति मिलती है
@AnnapurnaJain
@AnnapurnaJain
प्रेरणादाई और बहुत सुंदर भाव और उसी भाव से गाया गया है।अप्रतिम
@dilipsankhla5985
@dilipsankhla5985
Bahut_bahur sadhu vad
@HimanshuRanka01
@HimanshuRanka01
ऐसे ही ओर बनाते रहे👍👍🙏🙏
@bhanwarikothari1264
@bhanwarikothari1264
Virati pachisi is very virat
@parasnat
@parasnat
Jai guru nana 🙏🙏🙏🙏🙏
@Dr.Deepak_jain
@Dr.Deepak_jain 23 сағат бұрын
जय गुरु नाना जय गुरु राम🙏🏻
@RahulJain-mr1lx
@RahulJain-mr1lx
Jay guru Nana Jay guru ram
@smitadoshi1328
@smitadoshi1328
અદ્ભુત રચના
@sandeepshah9489
@sandeepshah9489
Itni madhur aavaaz abhi tak mene nahi suni koyal jaisi aawaz, shabdo shabdo me gahera arth hai. Thankyou
@vanitasipani3684
@vanitasipani3684
Ati uttam 🙏
@prakashchaplot7592
@prakashchaplot7592
अद्भुत रचना जय हो गुरुदेव
@ranichhajer7466
@ranichhajer7466
Jai jai guru ram🙏🙏
@realbotplayer9016
@realbotplayer9016
Bahut Sundar bhajan
@khusu0147
@khusu0147
❤❤
@dskkataria4067
@dskkataria4067
जय
@nirmalapincha
@nirmalapincha
🙏🙏
@padamjain1508
@padamjain1508
अदभुत प्रस्तुति 🙏 जय गुरु राम
||नाम के आगे राम लगे|| Naam ke Aage Ram Lage||
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