महाभारत की यह प्लेलिस्ट देखें bit.ly/GeetaSaarMahabharat
@gbstar68734 жыл бұрын
ना दोष दुर्योधन का था ना करण का सारा दोष शकुनि का था जिसने जहर फैलाया🙏🙏👍👍❤
@royal47982 жыл бұрын
Salute to angraj Karn 🌞🔥🔥
@pratapkumarswain21452 жыл бұрын
Jai mahaveer karan ki Jai
@KuldeepSingh-uq1tv4 жыл бұрын
मेघवर्ण व वृषकेतु दोनों ही सच्चे मित्र थे।
@strikors78162 жыл бұрын
भ्राता
@rajeshkaran4782 жыл бұрын
वृषकेतु और मेघ वर्ण रिश्ते में चाचा भतीजे थे पर हम उम्र होने के कारण दोनों एक दूसरे को मित्र समझते थे अर्थात मित्र जैसा व्यवहार करते थे।
@gbstar68734 жыл бұрын
2020 में महाभारत कौन कौन देख रहा है प्लीज लाइक करें👍👍👍👍👍👍
@KPGAMER30K4 жыл бұрын
Best video bhai ❤️❤️❤️❤️
@shantikaam37954 жыл бұрын
🔷बहुत प्रेरणास्पद कथा🔷 ✔अवश्य पढ़ें✔ एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते देखा.... अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दे दी। जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर लौट चला। किन्तु उसका दुर्भाग्य उसके साथ चल रहा था, राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली। ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा। ब्राहमण ने सारा विवरण अर्जुन को बता दिया, ब्राहमण की व्यथा सुनकर अर्जुन को फिर से उस पर दया आ गयी अर्जुन ने विचार किया और इस बार उन्होंने ब्राहमण को मूल्यवान एक माणिक दिया। ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा उसके घर में एक पुराना घड़ा था जो बहुत समय से प्रयोग नहीं किया गया था,ब्राह्मण ने चोरी होने के भय से माणिक उस घड़े में छुपा दिया। किन्तु उसका दुर्भाग्य, दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी... इस बीच ब्राहमण की स्त्री नदी में जल लेने चली गयी किन्तु मार्ग में ही उसका घड़ा टूट गया, उसने सोंचा, घर में जो पुराना घड़ा पड़ा है उसे ले आती हूँ, ऐसा विचार कर वह घर लौटी और उस पुराने घड़े को ले कर चली गई और जैसे ही उसने घड़े को नदी में डुबोया वह माणिक भी जल की धारा के साथ बह गया। ब्राहमण को जब यह बात पता चली तो अपने भाग्य को कोसता हुआ वह फिर भिक्षावृत्ति में लग गया। अर्जुन और श्री कृष्ण ने जब फिर उसे इस दरिद्र अवस्था में देखा तो जाकर उसका कारण पूंछा। सारा वृतांत सुनकर अर्जुन को बड़ी हताशा हुई और मन ही मन सोचने लगे इस अभागे ब्राहमण के जीवन में कभी सुख नहीं आ सकता। अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई।उन्होंने उस ब्राहमण को दो पैसे दान में दिए। तब अर्जुन ने उनसे पुछा “प्रभु मेरी दी मुद्राए और माणिक भी इस अभागे की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो इन दो पैसो से इसका क्या होगा” ? यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुरा भर दिए और अर्जुन से उस ब्राहमण के पीछे जाने को कहा। रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि "दो पैसो से तो एक व्यक्ति के लिए भी भोजन नहीं आएगा प्रभु ने उसे इतना तुच्छ दान क्यों दिया ? प्रभु की यह कैसी लीला है "? ऐसा विचार करता हुआ वह चला जा रहा था उसकी दृष्टि एक मछुवारे पर पड़ी, उसने देखा कि मछुवारे के जाल में एक मछली फँसी है, और वह छूटने के लिए तड़प रही है । ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी। उसने सोचा"इन दो पैसो से पेट की आग तो बुझेगी नहीं।क्यों? न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये"। यह सोचकर उसने दो पैसो में उस मछली का सौदा कर लिया और मछली को अपने कमंडल में डाल लिया। कमंडल में जल भरा और मछली को नदी में छोड़ने चल पड़ा। तभी मछली के मुख से कुछ निकला।उस निर्धन ब्राह्मण ने देखा ,वह वही माणिक था जो उसने घड़े में छुपाया था। ब्राहमण प्रसन्नता के मारे चिल्लाने लगा “मिल गया, मिल गया ”..!!! तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहाँ से गुजर रहा था जिसने ब्राहमण की मुद्राये लूटी थी। उसने ब्राह्मण को चिल्लाते हुए सुना “ मिल गया मिल गया ” लुटेरा भयभीत हो गया। उसने सोंचा कि ब्राहमण उसे पहचान गया है और इसीलिए चिल्ला रहा है, अब जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा। इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा। और उससे लूटी हुई सारी मुद्राये भी उसे वापस कर दी। यह देख अर्जुन प्रभु के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके। अर्जुन बोले,प्रभु यह कैसी लीला है? जो कार्य थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक नहीं कर सका वह आपके दो पैसो ने कर दिखाया। श्री कृष्णा ने कहा “अर्जुन यह अपनी सोंच का अंतर है, जब तुमने उस निर्धन को थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक दिया तब उसने मात्र अपने सुख के विषय में सोचा। किन्तु जब मैनें उसको दो पैसे दिए। तब उसने दूसरे के दुःख के विषय में सोचा। इसलिए हे अर्जुन-सत्य तो यह है कि, जब आप दूसरो के दुःख के विषय में सोंचते है, जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं, तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं, और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं।
@sankarthanapati26783 жыл бұрын
Om sri aurobindo mira . victory to the devine mother
@FactsMine7124 жыл бұрын
Jay shri Krishna.
@ShivaShiva-c6k6 ай бұрын
भीम के पुत्र की माया देखकर मजा आ गया
@ravishkumar79474 жыл бұрын
Thanks for this video
@kunjbiharirampainkra21704 жыл бұрын
Very nice story is north mahabharat katha .
@हिन्दूराष्ट्र-ह2घ4 жыл бұрын
🙏🙏 गीता 16 वां अध्याय -- 🙏 दैवी सम्पदा के गुण -- भय का सर्वथा अभाव अंतः करण की पूर्ण निर्मलता सात्विक दान स्वधर्मपालन के लिए कष्ट सहन इंद्रियों का दमन भगवान , देवता और गुरुजनों की पूजा कर्म में कर्तापन के अभिमान का त्याग चित्त की चंचलता का अभाव यथार्थ और प्रिय भाषण शास्त्र से विरुद्ध आचरण में लज्जा etc दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गयी है । मनुष्य या तो दैवी सम्पदा वाला होता है या आसुरी सम्पदा वाला 🙏🙏गीता 16 वां अध्याय -- 👉👉 आसुरी सम्पदा के लक्षण * दम्भ , अभिमान , कठोरता, अज्ञान * असुर स्वभाव वाले मनुष्य प्रवृत्ति और निवृत्ति इन दोनों को नहीं जानते । इसलिए उनमें न तो बाहर - भीतर की शुद्धि है , न श्रेष्ठ आचरण है , न सत्यभाषण है । * वे दम्भ , मान और मद से युक्त मनुष्य किसी प्रकार से पूर्ण न होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर अज्ञान से मिथ्या सिद्धांतों को ग्रहण करके भ्रष्ट आचरणों को धारण करके संसार में विचरते हैं । फिर वे आजीवन रहने वाली असंख्य चिंताओं का आश्रय लेने वाले , विषयभोगों में तत्पर रहने वाले और ' इतना ही सुख है ' इस प्रकार मानने वाले होते हैं । * वे सैकड़ो झूठे आशाओं से बंधे मनुष्य काम क्रोध के परायण होकर विषय भोगों के लिए अन्यायपूर्वक धनादि पदार्थों का संग्रह करने की चेष्टा करते हैं । फिरये मनोरथ करते हैं कि आज इतना धन है अब ये मनोरथ पूरा हो जाएगा । * मैं बड़ा धनी , कुटुंब वाला हूँ । मेरे समान दूसरा कोई नहीं है ? मैं यज्ञ करूँगा , दान करूँगा ,आमोद प्रमोद करूँगा । इस प्रकार अज्ञान से मोहित रहने वाला तथा अनेक प्रकार से भ्रमित रहने वाला मोहरूप जाल से समावृत और विषयभोगों में अत्यंत आसक्त आसुरलोग महान अपवित्र नरक में गिरते हैं । * वे अहँकार , बल , घमंड और क्रोध आदि के परायण और दूसरों की निंदा करने वाले पुरुष और दूसरों के शरीर में स्तिथ मुझ अंतर्यामी से द्वेष करने वाले हैं । * वे मूढ़ मुझे न प्राप्त होकर जन्म जन्म में असुर योनि को प्राप्त होते हैं , फिर घोर नरक में पड़ते हैं । मनुष्य या तो दैवी सम्पदा वाला होता है या आसुरी सम्पदा वाला । हिंदुओं ये बताओ कि तुम्हारे भीतर आसुरी सम्पदा के लक्षण हैं या दैवी सम्पदा के । जरूरत से ज्यादा महान बनने का शौक चढ़ा है न ? हर बात पर कहते हो कि ऐसा करने से मेरे और उसमें क्या अंतर रहेगा ? तुमसे ज्यादा भ्रष्ट ,पाखंडी , मिथ्याचारी हुआ कौन है ? अपने देवी देवताओं का चरित्र गिराने वाले हिंदुओं , corruption की कमाई खाने वालों जरा ये बताओ कि तुममें दैवी सम्पदा के गुण हैं या आसुरी सम्पदा के ।
@shivshankarkumarkumar63244 жыл бұрын
Very good
@vishnulal10714 жыл бұрын
जय श्री कृष्ण 😇
@devithapa14464 жыл бұрын
1st
@हिन्दूराष्ट्र-ह2घ4 жыл бұрын
🙏🙏 भगवद् गीता के कुछ श्लोकार्थ जो हर हिन्दुओ को पता होने चाहिए । 🕉 गीता के पहले अध्याय चालीसवें श्लोक में लव जिहाद यानी दूसरे कुल में शादी करना निषेध है लेकिन कोई धर्मग्रंथ पढ़े तब तो। गीता के पहले अध्याय में 40 वे से लेकर 45 वे श्लोक में दूसरे कुल में शादी मना है । 43 वे श्लोक में कहा गया है कि वर्णसंकर कारक दोषों से कुलघातियों के कुल और धर्म नष्ट हो जाते हैं और जिनका कुल और धर्म नष्ट हो गया हो उसका अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है । 🕉 गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण कहते है कि हे अर्जुन नपुंसकता को त्याग और युद्ध कर। अगर तू युद्ध नहीं करेगा तो तेरी अपकीर्ति होगी। जो अर्जुन सबसे बड़ा योद्धा था उसके मन मे एक पल के लिए युद्ध छोड़ने का ख्याल आया तो भगवान ने उसे नपुसंक यानि हिजड़ा बता दिया । ये अहिंसा परमोधर्मः , ऐसा करने से उसमें और मुझमे क्या अंतर रहेगा आदि का नारा वास्तव में गाँधी ने हिन्दुओ को कायर बनाने के लिए दिया था 🕉 2:20-23 -- आत्मा न तो जन्मता है न ही मरता है । जैसे मनुष्य वस्त्र त्यागकर दूसरे वस्त्र ग्रहण करता है वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर ग्रहण करती है । इस प्रकार अजन्मा और अमर आत्मा को लेकर शोक करना उचित नहीं है । यानी सनातन धर्मी के लिए मृत्यु वैसे ही है जैसे मनुष्य का कपड़े बदलना । अतः सनातनधर्मी को मृत्यु का भय नहीं होना चाहिए । 🕉 2:26 - फिर भी यदि तू इसे सदा जन्मने वाला और मरने वाला मानता है तो भी तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है 🕉2:32 -- क्षत्रिय ( धर्म के लिए लड़ने वाला ) के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है । किंतु यदि तू इस धर्मयुद्ध को स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा । सब लोग तेरी लंबे समय तक अपकीर्ति का कथन करेंगे और अपकीर्ति मरण से भी बढ़कर है । 🕉 2:37 -- अपने धर्म की रक्षा करते हुए अगर मारे गए तो स्वर्ग मिलेगा और अगर धर्मयुद्ध मे मारे गए तो राज्य मिलेगा 🕉 (2:38) निष्काम कर्म योग -- लाभ , हानि , जय पराजय किंतु परंतु को त्यागकर कर्म कर तेरा अधिकार कर्म करने में है , कर्म के फल करने में नहीं । 🕉 2:56 -- दुखों की प्राप्ति होने पर भी जिसके मन मे उद्वेग न हो , सुख की प्राप्ति में निस्पृह हो, जिसके राग, भय , क्रोध नष्ट हो गए हो , ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है । 🕉 2:71-- जो पुरुष कामनाओं को त्यागकर ममतारहित , अहंकाररहित और इच्छारहित विचरता है वही शांति को प्राप्त है । 🕉 3 :8 -- कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है। 🕉 3:19 -- आसक्ति से रहित होकर तू कर्म कर क्योंकि आसक्ति से रहित कर्म करने वाला मनुष्य परमात्मा को प्राप्त होता है। 🕉 3: 21 - श्रेष्ठ पुरुष जो आचरण करता है , अन्य पुरुष भी वैसा ही आचरण शुरू कर देते हैं । 🕉 3: 35-- गुणरहित अपना धर्म भी दूसरे के धर्म से अच्छा है। अपने धर्म मे मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय देने वाला है । 🕉 गीता 3: 38 से 41-- काम के द्वारा ये ज्ञान ढका रहता है। इन्द्रिय , मन , बुद्धि इनके निवास स्थान है । यह काम ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है । इसलिए तू इंद्रियों को वश में करके महान पापी काम को मार डाल । 🕉 गीता 9:25 - देवताओ को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते है , पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं और भूतों को पूजने वाले भूत योनि को प्राप्त होते हैं यानी वो भटकते रहते हैं उन्हें कभी मोक्ष नहीं मिलता। यानि पीर की मजार पर माथा टेकना या कब्रों पर रखा प्रसाद खाना धर्म विरुद्ध है । वैसे भी मुर्दों को जलाने के बाद नहाते हो और कब्रो पर रखा प्रसाद खाते हो। 🕉 अव्यभिचारिणी भक्ति योग -- गीता के 13 वे अध्याय में अव्यभिचारिणी भक्ति के बारे में कहा गया है। व्यभिचार मतलब अपनी पत्नी के अलावा किसी और के साथ रहना। अव्यभिचारिणी भक्ति मतलब भगवान वासुदेव के अलावा किसी की भक्ति न करना । न की साई बाबा , पीर बाबा , निर्मल बाबा, सद्गुरु बाबा और किसी बाबा की भक्ति करना । 🕉 17:25 -- जो दान क्लेशपूर्वक , प्रत्युपकार जो दान तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाए वो दान तामस कहलाता है। 🕉 गीता 18 :48 -- दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म को नहीं त्यागना चाहिए , क्योंकि धुएँ से अग्नि की भाँति सभी कर्म किसी न किसी दोष से युक्त है । अर्थात जो भी आपका काम है जैसे पूजापाठ , खेती, पशुपालन , व्यापार , नाई इत्यादि आपको सहज भाव से निःसंकोच करना चाहिए ।
@rajveerraika82784 жыл бұрын
जय श्री राम जय श्री कृष्णा महाभारत के 140 पाठ अपलोड करो
@abrarshah82524 жыл бұрын
Mahabarat
@qweqwe29472 жыл бұрын
jay shree krishna
@muljibhaileuva95353 жыл бұрын
Raja ne jivto chhodyo pan sainiko mari gya enu shu emno su vank
@blsaklani44383 жыл бұрын
राजा यौवनांश की पुत्री वृषकेतु की पत्नी थी
@rajeshkaran4782 жыл бұрын
राजा यौवनांश की पुत्री का क्या नाम था?
@girjeshlodhi25312 жыл бұрын
इस शाहरुख़ से एपिसोड की एंट्री से मूड खराब हो जाता है !