व्याख्या। रहीम। रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि

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HINDI KI PATHSHALA

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व्याख्या। रहीम। रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।
रहीम। व्याख्या । कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत।
रहीम।अब्दुर्रहीम।खानखाना।रहीम के दोहे।Rahim ke dohe।
video#रहीम के दोहे। व्याख्या।
/ @hindikipaathshaalaa
अब्दुर्रहीम।खानखाना।रहीम।दोहे।व्याख्या।
#अब्दुर्रहीम खानखाना।
जन्म 17 दिसंबर, 1556 मृत्यु-1628, #भक्ति काल के कवि रहीम। सगुण भक्त कवि रहीम# पिता का नाम-बैरम खां
#माहम अनगा के बहकावे पर बैरम खां का पतन हुआ। बैरम कह हत्या पाटन में हुई। बैरम की हत्या मुबारक खां ने की।
#नूरजहां के बहकावे पर रहीम का पतन हुआ। अकबर के समय में सबसे प्रभावशाली रहा। अकबर ने रहीम को मिर्जा खां और खानखाना की उपाधि दी।
#रहीम बहुभाषाविद् थे- संस्कृत, फारसी, अरबी, तुर्की, हिंदी, अवधी एवं ब्रजभाषा।
रहीम की जानकारी के स्रोत- मआसिरे रहीमी#मआसिरुल उमरा।
रचनाओं के नाम।दोहावली।नगर शोभा।बरबै नायिका भेद# बरबै#मदनाष्टक#श्रृंंगार सोरठा। खेट कौतुकजातक। फुटकर पद#बाकियाते बाबरी# फारसी दीवान# संस्कृत श्लोक
अकबर के साथ रहीम के संबंध-
मौसेरा एवं फूफेरा भाई, अकबर का धर्म पुत्र
अकबर का समधी- अकबर के बेटे दानियाल से रहीम की पुत्री जानां का विवाह। रहीम की पोती की शादी शाहजहां से हुई
रहीम की रचनाएं- दोहावली।
रहीम
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रहीम के दोहे
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रहिमन पानी राखिए बिनु पानी सब सून पानी गए न ऊबरै मोती मानुष चून
रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लें
रहिमन पानी राखिए दोहा अर्थ
नाद रीझि तन देत मृग
रहिमन निज मन की व्यथा
समय पाय फल होत है
रहिमन देखि बड़ेन को
रहिमन पानी राखिए निबंध pdf
अब्दुर्रहीम
रहीम की काव्यगत विशेषताएँ
रहीम की भक्ति भावना स्पष्ट कीजिए
Rahim Ji Ke Dohe
रहीम जी किस बात को सीखने को नहीं कहते हैं
रहीम दास का जन्म कहां हुआ था
रहीम - कवि
अब्दुल रहीम खानखाना - Latest Satsang
अब्दुल रहीम खानखाना अकबर के नवरजों में से एक थे।
रहीम की प्रमुख रचनाएँ
रहीम की भक्ति भावना स्पष्ट कीजिए
रहीम की काव्यगत विशेषताएँ
रहिमन जिहवा बावरी
रहिमन देखि बड़ेन को
रहिमन जिह्वा बावरी का अर्थ
रहिमन निज मन की व्यथा
बड़े बड़ाई ना करे दोहा का अर्थ
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय
रहिमन चुप है बैठिये
रहिमन पानी राखिए
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत ।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत ।।
इसका अर्थ है कि जब हमारे पास संपत्ति होती है, तो कई लोग हमारे साथ आते हैं और हमारे मित्र बन जाते हैं। लेकिन, सच्चे मित्र वही होते हैं जो विपत्ति के समय भी हमारे साथ बने रहते हैं।
इस दोहे का भावार्थ-
संपत्ति और संबंधी बहुत आसानी से मिल जाते हैं।
विपत्ति की कसौटी पर खरे उतरने वाले मित्र ही सच्चे मित्र होते हैं।
सच्चे मित्र अपने बीच अमीरी.गरीबी को आड़े नहीं आने देते।
सच्चा मित्र अपने मित्र को कुसंगति से बचाकर सन्मार्ग पर ले जाता है।
रहीम के दोहों में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरे अर्थ दिए गए हैं।
इन दोहों में संपत्ति, मित्रता, समर्पण, और सच्चाई के महत्व को बताया गया है।
रहीम के दोहे भारतीय साहित्य के अनमोल रत्न हैं, जो सदियों से लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शित करते आ रहे हैं। इन दोहों में जीवन के गहन सत्य और नैतिक मूल्यों को अत्यंत सरल और सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जो इन्हें हर आयु वर्ग के लिए सुलभ बनाता है। रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।
शब्दार्थ-देखि-देखकर/बड़ेन-बड़े/लघु-छोटा/डारि-त्यागना,फेंकना, छोड़ना/काम-कार्य,उपयोगिता/आवे-आना/सुई-सूई/कहा-कहॉं/ तलवारि-तलवार
संदर्भ-प्रस्तुत दोहा अब्दुर्रहीम खानखाना रचित कृतियों के विद्यानिवास मिश्र संपादित संग्रह ‘रहीम ग्रंथावली’ के ‘दोहावली’ खण्ड का है,
प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने चीज छोटी हो या बड़ी, महंगी हो या सस्ती, व्यक्ति धनी हो या नर्धन, बड़ा हो या छोटा सबका अपना अलग-अलग महत्व है, बड़े ही सुंदर ढंग से उदाहरण द्वारा समझाने का प्रयास किया है।
सरलार्थ एवं व्याख्या-प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि कभी-कहीं बड़ी वस्तु मिल जाए या बड़े लोग ही मिल जायें या उनकी संगति पा जायें तो उन्हें पाकर या देखकर छोटी वस्तु या छोटे लोगों को नहीं छोड़ देना चाहिए, उनका त्याग या तिरस्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि सबका अपना-अपना और अलग-अलग महत्त्व है, ठीक वैसे ही जैसे सूई का काम अलग है, उसका अलग महत्त्व है और तलवार का काम अलग है। सिलाई का काम सुई से ही किया जा सकता है, तलवार से नहीं। सुई जोड़ने का काम करती है जबकि तलवार काटने का। जिस काम को सूई कर सकती है, वह काम तलवार नहीं कर सकती और जो काम तलवार कर सकती है, वह काम सूई नहीं कर सकती है।
निष्कर्ष- वस्तु हो या व्यक्ति, छोटा हो या बड़ा, सबका सम्मान करना चाहिए, तिरस्कार नहीं।
अलंकार- दृष्टांत। अर्थान्तरन्यास अलंकार

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