whatsapp.com/channel/0029VaVPO6U1t90a3WnEv62f बंगाल के मंदिर से घास में छुपाकर लाई गई थी गोपीनाथ जी की मूर्ति,प्रथम शासक राव दौलत सिंह के समय गोपीनाथजी की यह मूर्ति सबसे पहले एक घास की कुटिया में रखी गई थी। जिसे राव शिवसिंह ने एक चमत्कार के बाद मंदिर में स्थापित कर राजा घोषित किया था। इसके बाद रियासत के हर शासक ने भी गोपीनाथ को ही राजा कहा- माना। आज भी श्रद्धालु नगर सेठ के साथ भगवान को गोपीनाथ राजा के नाम से पुकारते हैं। लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं कि गोपीनाथजी की इस मूर्ति का इतिहास औरंगजेब के आक्रमण से भी जुड़ा है। जिससे बचाने के लिए ही यह बंगाल से घास की पोटली में छिपते- छुपाते यहां लाई गई थी। जिसे औरंगजेब के डर से एकबारगी तो वापस भेजने की तैयारी भी कर ली गई थी। औरंगजेब ने 1663 ईस्वी में मामा शाईस्त खान को सूबेदार बनाया। जिसने बंगाल के प्रसिद्ध तीर्थ विष्णुपुर में काले पहाड़ को अधिकारी नियुक्त किया। जिसे यहां के गोपीनाथ मंदिर में लोगों की आस्था खटकने लगी, तो उसने मूर्ति सहित मंदिर को ध्वस्त करने की योजना बनाई। जिसकी जानकारी पर मंदिर के गोस्वामी महंतों ने गोपीनाथजी की मूर्ति घास के गठरों में छुपाई और बैलगाड़ी से वहां से रवाना हो गए। कई राज्यों में शरण के लिए मनाही के बाद वह 1600 किलोमीटर की यात्रा करते सीकर पहुंचे। जहां उन्होंने राव दौलत सिंह के दरबार में पहुंचकर भगवान गोपीनाथ को बसाने की गुजारिश की। इस पर राव दौलत सिंह ने तो औरंगजेब से युद्ध करने में असमर्थता जताते उन्हें जल्द ही रियासत छोड़ देने की बात कह दी, लेकिन वहां युवराज शिवसिंह ने जगत को शरण देने वाले भगवान को शरण देने को सौभाग्य बताते हुए पिता को इसके लिए तैयार कर लिया। जिसके बाद गोपीनाथ जी मूर्ति को एक झोपड़ी में विराजित करवा दिया गया। दिल्ली दरबार से भेजी सेना इतिहाकारों के अनुसार राव दौलत सिंह के बाद शिवसिंह राव बने तो उन्होंने गोपीनाथजी का बड़ा मंदिर बनाने की योजना बनाई। लेकिन, धन की कमी थी। इसी बीच काबूल से सीकर होकर आगरा जा रहे चांदी लदे ऊंटों को उन्होंने घर आई लक्ष्मी बताते हुए अपने अधीन कर लिया। जिसकी शिकायत दिल्ली दरबार पहुंची तो जां निसार खां की अगुआई में एक सेना सीकर के लिए कूच करवा दी गई। जो जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह के हस्तक्षेप से वापस लौट गई। इस संकट को दूर करने में गोपीनाथजी की ही कृपा मानते हुए राव शिव सिंह ने इसके बाद सीकर के परकोटे व हर्ष के शिवालय के साथ गोपीनाथजी का मौजूदा मंदिर बनाया और बंगाल की वही मूर्ति स्थापित कर उन्हें सीकर का राजा घोषित कर दिया। कहते हैं कि तभी से गोपीनाथजी सीकर के राजा कहला रहे हैं। विक्रम संवत 1778 में सीकर के राजा राव शिव सिंह ने गोपीनाथ मंदिर की स्थापना की थी। राजा गोपीनाथ की प्रतिमा बंगाल से लेकर आए थे। राजा खुद को गोपीनाथ का सेवक मानते थे। तब से ही गोपीनाथ जी को राजा गोपीनाथ कहा जाता है। मंदिर में गोपीनाथ के साथ सत्यभामा रुक्मणी भी विराजित है।
@prarabdhkyal681926 күн бұрын
Jai Shree Shyam
@SanwariyasethjiMadfiya4 ай бұрын
Jai Ho shyam dhani ki
@01pointstudy69Ай бұрын
khatu naresh ki jay
@sushmagarg56513 ай бұрын
Jai ho baba ki🙏🙏
@subhamagarwalla54906 ай бұрын
Jai shree shyam Love from assam We were there in the program ❤❤ Baba ne khub Anand lutaya
@sunitasharma7826 ай бұрын
jai shree shyam 🙏
@MANJUsharma-xy3ic6 ай бұрын
Jai shree shyam 🚩🙏🏻❤️
@manjuswami9541Ай бұрын
🙏🏻🌹जय श्री श्याम 🌹🙏🏻
@AnkitSharma-kq7er5 ай бұрын
Jay shree Shayam
@HarshKumar-on3in3 ай бұрын
jai shree shyam bhaiya please bhaiya is kirtan ko pura upload kijiye na us time aa nhi sake the please bhaiya apko phele bhi message kiya hua hai