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ये स्तोत्र आपको सब कुछ देगा । इसको श्री कृष्ण ने गाया है । एक वर्ष करना है ।
सबसे पहले गोलोकमें परमात्मा श्रीकृष्णने वसन्त ऋतुमें रासमण्डलके भीतर प्रसन्नतापूर्वक देवीकी पूजा करके उनकी स्तुति की थी। दूसरी बार मधु और कैटभके साथ युद्धके अवसरपर भगवान् विष्णुने देवीका स्तवन किया। तीसरी बार वहीं प्राणसंकटका अवसर आया जान ब्रह्माजीने दुर्गादेवीकी स्तुति की थी। मुने! चौथी बार त्रिपुरारि शिवने त्रिपुरोंके साथ अत्यन्त घोरतर युद्धका अवसर आनेपर भक्तिभावसे देवीका स्तवन किया था और पाँचवीं बार वृत्रासुरवधके समय घोर प्राणसंकटकी बेलामें सम्पूर्ण देवताओंसहित इन्द्रने दुर्गादेवीकी स्तुति की थी। तबसे मुनीन्द्रों, मनुओं और सुरथ आदि मनुष्योंने प्रत्येक कल्पमें परात्परा परमेश्वरीका स्तवन एवं पूजन करना आरम्भ किया।
शास्त्रों में इसे दुर्गनाशनस्तोत्र कहते हैं ।
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