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देवीधुरा उत्तराखण्ड में वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है
श्रावण मास की पूर्णिमा को हज़ारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला
पौराणिक धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल देवीधुरा अपने अनूठे तरह के पाषाण युद्ध के लिये पूरे भारत प्रसिद्ध है।
श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन जहाँ समूचे भारतवर्ष में रक्षाबंधन के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ बहनों का अपने अपने भाई के प्रति स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है
वहीं हमारे देश में एक स्थान ऐसा भी है जहाँ इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों को युद्ध के लिये तैयार कर,
युद्ध के अस्त्र के रूप में उपयोग होने वाले पत्थरों से सुसज्जित कर विदा करती हैं
प्राचीन काल से चली आ रही यहाँ की एक स्थापित परंपरा के अनुसार माँ बाराही धाम में श्रावणी पूणिमा (रक्षाबंधन के दिन) को
यहाँ के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर (जिन्हे खाम कहा जाता है, क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल,) दो समूहों में बंट जाते हैं
और इसके बाद होता है एक युद्ध जो पत्थरों को अस्त्र के रूप में उपयोग करते हुये खेला जाता है।
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