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मां चण्डी देवी मंदिर का इतिहास -
१) देश में बने 52 शक्तिपीठों में से एक चंडी देवी मंदिर का पौराणिक इतिहास है. मंदिर के मुख्य पुजारी बताते हैं कि आदि काल में जब शुम्भ निशुम्भ ने धरती पर प्रलय मचाया हुआ था. तब देवताओं ने उनका वध करने का प्रयास किया मगर जब उन्हें सफलता नहीं मिली. तब जाकर उन्होंने मां भगवती से दोनों राक्षसों से मुक्ति पाने की गुहार लगायी गयी ओर देवताओं की विनती पर मां भगवती ने चंडी का रूप धरकर उन दोनों राक्षसों का वध करने की ठान ली.
मां चंडी देवी के प्रकोप से बचने के लिए शुम्भ निशुम्भ नील पर्वत पर आकर चिपक गए. तभी माता ने यहां पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया. इसके बाद देवताओं के आह्वान पर मां चंडी, मानव जाति के कल्याण के लिए इसी स्थान पर खम्ब के रूप में विराजमान हो गईं और आदि काल से अपने भक्तों का कल्याण करती आ रही हैं.
मुरादें पूरी होती हैं
जो भी भक्त सच्चे मन से कोई भी मुराद मांगता है मां चंडी उसे जरूर पूरा करती हैं. अपनी मुराद पूरी करने के लिए मंदिर परिसर में माता की चुनरी बांधने की मान्यता है. मुराद पूरी होने पर भक्त चुनरी खोलने के लिए दोबारा मंदिर आते हैं. यही कारण है कि नवरात्रों के दौरान यहां पर दूर दूर से आने वाले भक्तों की लम्बी कतारें नजर आती हैं
मदिर तक कैसें पहुंचे :-
जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा, हरिद्वार का निकटतम हवाई अड्डा है जो 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। जॉली ग्रांट हवाई अड्डा दैनिक उड़ानों के साथ दिल्ली से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और मोटर योग्य सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है
ओर हरीद्वार से कुछ ही किलोमिटर की दूरी तय कर आप माँ चण्डीदेवी मन्दिर पहुँच सकते है
Question Enquire :-
1) माँ मनसा देवी मंदिर हरिद्वार
२) विंध्यवासिनी मन्दिर (पौड़ी गडवाल )
३) दक्षिण काली मन्दिर हरीद्वार
४) दक्ष महादेव मन्दिर कनखल हरिद्वार
५) हरिद्वार हरि की पौड़ी
जय माँ गंगे , हर हर गंगे
हर हर महादेव