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कौशिक युनि के साथ बालक ट्रि अधिक सुयचे श्यापल गोरि किशोर भूप दशरथ के जाये पिचिलापति करि जोरि विनय प्रभु करछु नगर प
यहु प्रण......
2
शिव घन कठिन कठौर कुँवर ही कोपल गाता स्तुर पुर के सब लोग कहखें स्नेह की जाता सुन्दर वर सांवर लिय लायक करहु विवाह नरेंसी
यह प्रण.......
3-
कोटि कहयों अपुझाय जात केहू के न मान्य, कहे लिय लब्जा जाय चाप टूरै नहि देौं बिन हुदै न दिही सिया को कोटि करें उपदेशा
यहु प्रन.......
4
गुरु अनुशामन पाय चाप प्रभु लिही उठाई डोली उठें दिखपाल टारी के दीसों चलायी कंहि हगहि महीपति जाकें, धार न राहें कईसा राहु प्रण
5.
गावत मंगल चारि जनकपुर बलै बधाई; गिरिक्षापति को सुमिरि सिया याला पहाई तुलसीवारा भनौ भगवानै, बरसाई सुप्त कलमा
यह प्रण......
सपाप्त
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