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श्री यमुनाष्टक
(गोस्वामी श्रीहित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु प्रणीत)
ब्रजाधिराज नन्दनाम्बुदाभ गात्र चन्दना-नुलेप गंध-वाहिनीं भवाब्धि-बीज-दाहिनीम्
जगत्त्रये यशस्विनीं लसत्सुधा पयस्विनीं, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ १॥
रसैकसीम राधिका पदाब्ज-भक्ति-साधिकां, तदंग-राग-पिंजर प्रभाति पुंज मंजुलाम् ।
स्वरोचिषाति शोभितां कृतां जनाधिगंजनां, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ २॥
ब्रजेन्द्रसूनु राधिका हृदि - प्रपूर्यमाणयोर्महा रसाब्धि-पूरयो-रिवाति तीव्रवेगतः
बहिः समुच्छलन्नव प्रवाह-रूपिणी-महं, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ ३॥
विचित्र रत्न बद्ध सत्तटद्वय श्रियोज्ज्वलां, विचित्र हंस सारसा-द्यनन्त पक्षि संकुलाम् ।
विचित्र मीन मेखलां कृताति-दीन-पालितां, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ ४॥
वहन्तिकां श्रियां हरे-र्मुदा कृपा स्वरूपिणीं, विशुद्धभक्ति - मुज्ज्वलां परे रसात्मिकां विदुः ।
सुधा श्रुतित्व-लौकिकीं परेश-वर्ण-रूपिणीं, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ ५॥
सुरेन्द्रवृन्द वन्दितां रसादधिष्ठिते वने, सदोपलब्ध माधवाद् - भुतैक - सदृशोन्मदाम् ।
अतीव विह्वला मिवोच्चलत्तरंग दोर्लतां, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ ६ ॥
प्रफुल्ल पंकजाननां लसन्नवोत्पलेक्षणां, रथांगनाम युग्मक - स्तनी - मुदार हंसिकाम् ।
नितंब चारु रोधसां हरेः प्रिया रसोज्ज्वलां, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ ७ ॥
समस्त वेद मस्तकै रगम्य वैभवां सदा, महामुनीन्द्र नारदादिभिः सदैव भाविताम् ।
अतुल्य पामरै-रपि श्रितां पुमर्थ-सारदां, भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ ८॥
य एतदष्टकं बुधस्त्रिकाल मादृतः पठेत्, कलिन्द-नन्दिनीं हृदा विचिन्त्य विश्ववन्दिताम् ।
इहैव राधिकापतेः पदाब्ज-भक्ति-मुत्तमा- मवाप्य स ध्रुवं भवेत् परत्र तत्प्रियानुगः ॥९॥
Satsang by - Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj
From - Shri Hit Radha Keli Kunj , Near Bhaktivedanta Hospital , Parikrama Marg, Varaha Ghat, Vrindavan
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