आज साहब घर मंगलकारी । गाय रहीं सखियाँ मिल सारी ॥ १ ॥ ऋतु वसन्त आये पुरुष पुराने । शोभा धारी अद्भुत न्यारी ॥ २ ॥ मेहर दया की पर्वल' धारा । रोम रोम अँग अँग से जारी ॥ ३ ॥ जनम जनम के बिछड़े हंसा । चरन कँवल में लिये लिपटा री ॥ ४ ॥ सब सखियाँ जुड़ मल मल न्हावत । करम भरम से होवत न्यारी ॥ ५ ॥ सत्तपुरुष के दरश निहारत । अलख अगम निरखत पद भारी ॥ ६ ॥ प्रेमभरी मेरी सुरत सुहागिन । गाय रही राधास्वामी गुन सारी ॥ ७ ॥ R.S