i really appreciate the actress for coming up & what she have described her experience is totally true. initial stigma to seek help & now how she has come to acknowledge.
@akshaykumar-uh7vd8 жыл бұрын
always expected this from NDtv , warna desh bhakti ki apno se desh k andar ho rahi andhi ladai ko to डेड़ दिमाग एंकर जैसे अर्नव , सुधीर चौधरी अपने फायदे के लिए जिस तरह इस्तेमाल कर रहे है वो बताता है कि देश किस तरह के मानसिक दिवालियेपन से गुजर रहा है और इन चेनलो को देखने वाले वो जिहादी लोग भी उतने ही जिम्मदार है जो किसी जिहादी कैंप में बचपन से जाते है और देश भक्ति की भावना को किसी व्यक्ति विषेश के प्रति नफरत जाता कर,(जो की निस्चित ही झूटी है।), जाहिर करना सीखते है, लड़ने मारने की भावना का उन बच्चो में चर्म विकाश किया जाता है, उन बच्चो को हमेशा देश के पुराने रीती रिवाज़ों को में हो रहे सामान्य परिवर्तनों को विहंगम रूप दिखा कर उनकी मानसिक भावना से खिलवाड़ किया जाता रहा है, जबकि यही समय होता है हर बच्चे की ज़िंदगी में की वो अपने आश पास हो रही चीज़ों को स्वयं के विवेक से समझे और नित नए क्रॉस question कर उनमे अंतर करना सीखें और देश भक्ति की एक परिपक्कव समझ को स्थापित करे, पर ये जिहादी कैंप उन्हें केवल और केवल उनके कैंप के शिक्षक की दूषित भावनाओ से प्रभावित कर एक ही प्रकार की मानसिकता का लेपन उन बच्चो पर कीये जा रहे है जो की आज 40-45 साल में अपने चरम पर पहुच चुकी है क्योंकि वही बच्चे जो अब बड़े हो चुके है अपने बच्चो को भी इसी तरह के कैंप में माँ सिर्फ भेज रहे बल्कि वंहा से घर वापस आने पर भी उशी प्रकार का माहौल दे रहे है। मेरी ईश् बात का अगर अंतर समझना हो,इस बात की भयावता को जान ना हो तो आप देश की उन युवतियों के विचारों से समझो जो इन कैंपो में जाती हो और जो नहीं जाती हो । युतियां इसलिए क्योंकि ऐसे कैंपो में अभी तक इतने बड़े पैमाने पर ये जिहादी कैंप अपना अभियान युवतीयों के लिए नहीं चला पाये है (जो की उनकी बहुत पुरानी मानसकिता को ही दर्शाता है कि वे युतियों को उष समय अपने कैंपो में allow क्यों नहीं करना चाहते थे, हलकी ये देश के लिए सकारात्मक रूप से अछि रही क्योंकि वो इन कैंपो के दूषित उद्देश्यों से परेय रही (मनुवादिता)) जब आप दोनों तरह की युतियों के विचारों को campare करेंगे तो पाएंगे कि उसमे जमींन आश्मान का फर्क है, क्योंकि एक युती वही सीखती रही जो इनके जिहादी आकाओं का उद्देश्य था और दूसरी उसकर जीवन में आ रही विभिन्न समस्याओं को आप्श में अन्तर कर क्रॉस question कर उनसे एक सकारात्मक व्यक्तित्व विकसित करती रही, जो की देश के लिए सही है अगर इन कैंपो ने महिलाओं को सुरु से बड़े पैमाने पर आमंत्रित किया होता तो आज ये दशा होती की जो युवती इन कैंपो में ना गई हो उशे ये लोग पश्चिम भावना से प्रेरित मान ने लगते क्योंकि उशे अपने अधिकार की लडाई करना आने लगा है ऐसा नहीं है अभी ऐसा नहीं होता है अभी इन आरोपो को और भी अभद्र रूप इन कैंपो से निकलने वाले युवक दे रहे है और उन सकरात्मक विचार की युवतियों को social media पर अपशब्दो से अपमानित करते है। ठीक इशी तरह ये कैंप देश के लोगो में देश भक्ति का अंधा रूप अपने अंधे भक्तो ( जो की बचपन से अंधे नहीं थे) में विकसित करते आ रहे है और इन के प्रभाव में आ रहे युवको को भी अपनी अंधी देश भक्ति की बिमारी का संचरण करने में सफल हो रहे है जबकि देश भक्ति आपश में एक दुसरो की भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता देती है और इस बोलने की स्वतंत्रता से कुछ ऐसी बाते निकलने लगे जो आगे चल कर देश के अहित में हो तो उस विचार धारा को सकरात्मक रूप से परिवर्तन करने के लिए ऐसी नीति बना ने को प्रेरीत करने वाली हो जो लोगो को साधारण भाषा और बिना हिंसा के समझाई जा सके ना की आप्श में मरने मारने , लड़ने लड़ाने , काटने पीटने वाली भावना का विकाश कर अपने राजनितिक हित को साधने वाली हो। अगर सच में किसी को जान ना हो की 60 साल में क्या हुआ तो उन्हें समझना चाहिए की इन 60 साल में देश पर भगवा नहीं चढ़ सका वही भगवा जो एक समय देश की आज़ादी का विरोध कर रहा था कि देश जबतक हिन्दू राष्ट्र घोसित नहीं होता तब तक इशें स्वतंत्र न किया जाए, वही भगवा जो देश के स्वतंत्रता सेनानियों की मुखबिरी अंग्रेजो से करता था, और जब इन सब के बाद भी देश आज़ाद हो गया लोगो को भावनाओ के अनुरूप देश विभाजित हो गया तो इन्हें ये सब हज़म नहीं हुआ और गांधी की हत्या कर दी गई और कायरता इतनी की उश पब्लिकली स्वीकारने में भी पसीने छूट जाते है इनके, पर हाँ अपने कैंपो में ये इन्ही के खिलाफ देश के बच्चो को भड़काकर उनकी मानसिक छमता का शोषण करते है और उन्हे असहाय बना कर समाज में भेज देते है जिसका विकराल रूप आज देश के सामने अंधी देश भक्ति के रूप में है ऐसे ही बहुत सी बातें इन कैंपो और उनके दुष्प्रभाव की है जो देश को अंदर से खोखला कर रही है, आप को हर जान ना चाहिए की इन कैंपो के 80-90 प्रतिशत युवक ज़िन्दगी में सिवाय कट्टरता फैलाने के कुछ अच्छा नहीं कर पाते है और अंततः एक राजनीतिक पार्टी को समर्थन देकर उत्साह महसूश करते है लेकिन इन्हें ये जरूर जान न चाहिये की किसी भी राजनितिक पार्टी के वर्करों का एक उम्र के बाद जो हसल होता है वो सायद किसी रैप से कम न हो क्योंकि वो व्यक्ति पूरी ज़िंदगी इन पार्टीयो के लिए गँवा देता है और उशे और नहीं उसके बच्चो को कुछ हासिल हो पाता है न ही वो अपने बच्चो को ऐसा समाज दे पाता है जंहा उसके बोलने विचार रखने की स्वतंत्रता भी संकुचित होती जा रही है
@hiteshagarwal88335 жыл бұрын
Can you please change the background sound effect. It always matters . Sorry but it just a request.
@dr.shravankumarthakur50496 жыл бұрын
Most of the people still don't know the difference between a Neuropsychiatrist/Psychiatrist and psychology persons. This is another confusing matter. Psychology persons take undue advantage of this and they misguide patients. Kindly take note only Neuropsychiatrist/Psychiatrist can treat a patient because they have MBBS MD degree and qualified for prescribing medicines. Psychology is altogether different. This is just an art subject like history or Hindi or English etc and this subject is nothing to do with treatment of diseases.
@amitkumarmonu8 жыл бұрын
this problem is related to both psychological and sociology