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#koham3469
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: ।।
।।09:26।।
पत्रम् = पत्र; पुष्पम् = पुष्प; फलम् = फल; तोयम् = जल(इत्यादि); य: = जो (कोई भक्त); मे = मेरे लिये; भक्त्या = प्रेम से; प्रयच्छति = अर्पण करता है; तत् = वह(पत्र पुष्पादिक); अहम् = मैं (सगुणरूपसे प्रकट होकर प्रीतिसहित); भक्तयुपहृतम् = प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ; अश्रामि = खाता हूं ; प्रयतात्मन: = शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का।
जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ ।।
Whosoever offers to me with love a leaf, a flower, a fruit or even water, I appear in person before that disinterested devotee of sinless mind, and delightfully partake of that article offered by him with love.
अजब हैरान हूँ भगवन तुम्हें कैसे रीझाऊँ मैं।
जय श्रीकृष्ण।🙏