भगवान श्री कृष्ण की अमृत वाणी श्रीमद् भगवत गीता का सार इसमें ही निहित है जीवन का उद्देश्य भक्ति ज्ञान तथा कर्म में कौन श्रेष्ठ है यह जानने में नहीं अपितु इनके बीच समय परिस्थिति तथा प्रकृति के अनुसार सामंजस्य बिठाना है। इस अनूठे ज्ञान के लिए साधुवाद तथा हार्दिक धन्यवाद आचार्य जी
@pawanbajpai12154 жыл бұрын
अप्रतिम सुंदर अभिव्यक्ति.....
@PraveenKumar-ww9ce4 жыл бұрын
Jai mahaprabhu....
@sonvirkuntal30442 жыл бұрын
Ramramji
@rajeshkumarpalkotwa95083 жыл бұрын
Ativ sunder.....
@bholugupta5254 жыл бұрын
🙏🙏🙏
@aanadkumar69094 жыл бұрын
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🏻🙏🏻 बहुत सुंदर
@sanjivkumar55594 жыл бұрын
Ati sunder.....
@minakshimalviya37304 жыл бұрын
Atisunder guruji
@ajayrajputcom10744 жыл бұрын
Nice one....
@madhavpreyasi25764 жыл бұрын
यदि हम रामायण या श्री मद्भागवत का अध्ययन करें तो हमें इस बात का ज्ञान हो जाएगा इसमें भगवान सब चीजें यानि जिस चीज की हम उनसे कामना करते हैं वो देने की बात वो स्वयं तो करते हैं लेकिन"भक्ति" को सहज ही प्रदान नहीं करते। भक्ति के भी कई स्वरूप होते हैं जैसे (अनपायनी भक्ति,प्रेम भक्ति,अविरल भक्ति,विमल भक्ति,परम विशुद्ध भक्ति,सहज स्नेह भक्ति,नवधा भक्ति।