भलाई का कर्ज | दिलचस्प कहानी | Dilchasp Kahani | Hindi Moral Story | हिन्दी कहानी | लोक कथा |

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इस कथा की सीख यह है कि हम जब भी निस्वार्थ भाव से किसी की मदद के लिए कोई काम करते हैं तो उसका लाभ जरूर मिलता है। ऐसा काम करते समय ये नहीं सोचना चाहिए कि इस काम से हमें क्या लाभ मिलेगा। निस्वार्थ भाव से किया गया काम हमारे पुण्यों में बढ़ोतरी करता है और दूसरों को इससे लाभ मिलता है।
अगले दिन फिर संत ने टोकरी बनाई और नदी में बहा दी। इस काम से उनका समय कट जाता था। इसीलिए ये सिलसिला काफी दिनों तक चला। संत रोज एक टोकरी बनाते और नदी में बहा देते थे। फिर एक दिन संत ने सोचा कि मैं व्यर्थ ही ये काम कर रहा हूं। घास की टोकरी बनाकर नदी में बहा देता हूं, इससे मेरा तो कोई फायदा नहीं होता। अगर मैं ये टोकरियां किसी को दे देता तो यह किसी के काम आ सकती थी। ये बात सोचकर संत ने अगले दिन से घास की टोकरियां बनानी बंद कर दी।
कुछ दिन बाद संत नदी के किनारे टहलने निकले। आगे जाकर उन्होंने देखा कि एक वृद्ध महिला नदी किनारे उदास बैठी थी। संत ने महिला से उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। मैं अकेली हूं। कुछ दिनों पहले तक नदी में रोज घास से बनी सुंदर टोकरी बहकर आती थी, जिसे बेचकर मैं अपना गुजारा कर लेती थी, लेकिन अब टोकरियां आना बंद हो गई हैं। इसलिए मैं दुखी हूं। महिला की बात सुनकर अगले दिन से संत फिर से घास की टोकरियां बनाकर नदी में बहाने लगे।
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