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बिहारी के दोहे
मेरी भव बाधा हरौ राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई परै स्यामु हरित दुति होय।।
जपमाला, छापै, तिलक सरै न एकौ कामु ।
मन-काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु ।।
बतरस- लालच लाल की मुरली घरी लुकाइ ।
सोहँ करें भौं हनु हँस, दैन कहे नटि जाइ ||
जब-जब वै सुधि कीजियै, तब तब सुधि जाँहि ।
आँखिनु आँख लगी रहें, आँखें लागति नाँहि ।।
नर की अरु नल नीर की गति एक करी जोय।
जेतो नीचौ हवै चलै तेतो ऊँचो होय।।
संगति सुमति न पावही परे कुमति के धन्ध।
राखौ मेलि कपूर में हींग न होत सुगंध ।।
बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाया।
कहत धतूरे सो कनक, गहनो गढ़यों न जाय ।।
दीरघ साँस न लेहु दुख, सुख साईं हि न भूल।
दई दई क्यों करतू है, दई दई सु कबूलि ।।