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श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! एक दिन मुनिश्रेष्ठ प दुर्वासा परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्रका दर्शन करनेके लिये ब व्रजमण्डलमें आये। उन्होंने कालिन्दीके निकट पवित्र वालुकामय पुलिनके रमणीय स्थलमें महावनके समीप श्रीकृष्णको निकटसे देखा। वे शोभाशाली मदनगोपाल बालकोंके साथ वहाँ लोटते, परस्पर मल्ल-युद्ध करते तथा भाँति-भाँतिकी बालोचित लीलाएँ करते थे। इन सब कारणोंसे वे बड़े मनोहर जान पड़ते थे। उनके सारे अङ्ग धूलसे धूसरित थे। मस्तकपर काले घुँघराले केश शोभा पाते थे। दिगम्बर-वेषमें बालकोंके साथ दौड़ते हुएश्रीहरि-
को देखकर दुर्वासाके मनमें बड़ा विस्मय हुआ ॥१-४॥ श्रीमुनि (मन-ही-मन ) कहने लगे- क्या यह वही षड्विद्वध ऐश्वर्यसे सम्पन्न ईश्वर है? फिर यह बालकोंके साथ धरतीपर क्यों लोट रहा है? मेरी समझमें यह केवल नन्दका पुत्र है, परात्पर श्रीकृष्ण नहीं है॥५॥
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! जब महामुनि दुर्वासा इस प्रकार मोहमें पड़ गये, तब खेलते हुए श्रीकृष्ण स्वयं उनके पास उनकी गोदमें आ गये फिर उनकी गोदसे हट गये। श्रीकृष्णकी दृष्टि बाल-सिंहके समान थी। वे हँसते और मधुर वचन बोलते हुए पुनः मुनिके सम्मुख आ गये। हँसते हुए श्रीकृष्णके श्वाससे खिंचकर मुनि उनके मुँहमें समा गये। वहाँ जाकर उन्होंने एक विशाल लोक देखा, जिसमें अरण्य और निर्जन प्रदेश भी दृष्टिगोचर हो रहे थे। उन अरण्यों (जंगलों) में भ्रमण करते हुए मुनि बोल उठे- 'मैं कहाँसे यहाँ आ गया ? इतनेमें ही उन महामुनिको एक अजगर निगल गया। उसके पेटमें पहुँचनेपर मुनिने वहाँ सातों लोकों और पातालोंसहित समूचे ब्रह्माण्डका दर्शन किया। उसके द्वीपोंमें भ्रमण करते हुए दुर्वासा मुनि एक श्वेत पर्वतपर ठहर गये। उस पर्वतपर शतकोटि वर्षांतक भगवान्का भजन करते हुए वे तप करते रहे। इतनेमें ही सम्पूर्ण विश्वके लिये भयंकर नैमित्तिक प्रलयका समय आ पहुँचा। समुद्र सब ओरसे धरातलको डुबाते हुए मुनिके पास आ गये। दुर्वासा मुनि उन समुद्रोंमें बहने लगे। उन्हें जलका कहीं अन्त नहीं मिलता था। इसी अवस्थामें एक सहस्र युग व्यतीत हो गये। तदनन्तर मुनि एकार्णवके जलमें डूब गये। उनकी स्मृति-शक्ति नष्ट हो गयी। फिर वे पानीके भीतर विचरने लगे। वहाँ उन्हें एक दूसरे ही ब्रह्माण्डका दर्शन हुआ। उस ब्रह्माण्डके छिद्रमें प्रवेश करनेपर वे दिव्य सृष्टिमें जा पहुँचे। वहाँसे उस ब्रह्माण्डके शिरोभागमें न विद्यमान लोकोंमें ब्रह्माकी आयु पर्यन्त विचरते रहे। इसी प्रकार वहाँ एक छिद्र देखकर श्रीहरिका स्मरण करते हुए वे उसके भीतर घुस गये। घुसते ही उस ब्रह्माण्डके बाहर आ निकले। फिर तत्काल उन्हें महती जलराशि दिखायी दी। उस जलराशिमें उन्हें कोटि-कोटि ब्रह्माण्डोंकी त राशियाँ बहती दिखायी दीं। तब मुनिने जलको ध्यानसे स देखा तो उन्हें वहाँ विरजा नदीका दर्शन हुआ। उस नदीके पार पहुँचकर मुनिने साक्षात् गोलोकमें प्रवेश किया। वहाँ उन्हें क्रमशः वृन्दावन, गोवर्धन और सुन्दर च यमुनापुलिनका दर्शन करके बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर इ वे मुनि जब निकुञ्जके भीतर घुसे, तब उन्होंने अनन्त अ कोटि मार्तण्डोंके समान ज्योतिर्मण्डलके अंदर दिव्य है लक्षदल कमलपर विराजमान साक्षात् परिपूर्णतम पुरुषोत्तम
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/ @sanatanvaani-um8by
कृष्ण ऊखल बन्धन लीला !! Krishna Ukhal Bandhan Leela !!
• कृष्ण ऊखल बन्धन लीला !...