कृष्ण ऊखल बन्धन लीला !! Krishna Ukhal Bandhan Leela !!

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sanatan vaani

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Күн бұрын

दामोदर कृष्णका उलूखल-बन्धन तथा उनके द्वारा यमलार्जुन-वृक्षोंका उद्धार
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! एक समय गोपाङ्गनाएँ घर-घरमें गोपालकी लीलाएँ गाती हुई गोकुलमें सब ओर दधि-मन्थन कर रही थीं। श्रीनन्द- मन्दिरमें सुन्दरी यशोदाजी भी प्रातःकाल उठकर दहीके भाण्डमें रई डालकर उसे मथने लगीं।मथानीकी आवाज सुनकर बालक श्रीनन्दनन्दन भी नवनीतके लिये कौतूहलवश मञ्जीरकी मधुर ध्वनि प्रकट करते हुए नाचने लगे। माताके पास बाल- क्रीडापरायण श्रीकृष्ण बार-बार चक्कर लगाते और नाचते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे और बजती हुईकरधनीके घुघुरुओंकी मधुर झंकार बारंबार फैला रहे थे। वे मातासे मीठे वचन बोलकर ताजा निकाला हुआ माखन माँग रहे थे। जब वह उन्हें नहीं मिला, तब वे कुपित हो उठे और एक पत्थरका टुकड़ा लेकर उसके द्वारा दही मथनेका पात्र फोड़ दिया। ऐसा करके वे भाग चले। यशोदाजी भी अपने पुत्रको पकड़नेके लिये पीछे- पीछे दौड़ीं। वे उनसे एक ही हाथ आगे थे, किंतु वे उन्हें पकड़ नहीं पाती थीं। जो योगीश्वरोंके लिये भी दुर्लभ हैं, वे माताकी पकड़में कैसे आ सकते थे ॥१-६॥
नृपेश्वर ! तथापि श्रीहरिने भक्तोंके प्रति अपनी भक्तवश्यता दिखायी, इसलिये वे जान-बूझकर माताके हाथ आ गये। अपने बालक-पुत्रको पकड़कर यशोदाने रोषपूर्वक ऊखलमें बाँधना आरम्भ किया। वे जो-जो बड़ी-से-बड़ी रस्सी उठातीं, वही-वही उनके पुत्रके लिये कुछ छोटी पड़ जाती थी। जो प्रकृतिके तीनों गुणोंसे न बँध सके, वे प्रकृतिसे परे विद्यमान परमात्मा यहाँके गुणसे (रस्सीसे) कैसे बँध सकते थे ? जब यशोदा बाँधते-बाँधते थक गयीं और हतोत्साह होकर बैठ रहीं तथा बाँधनेकी इच्छा भी छोड़ बैठीं, तब ये स्वच्छन्दगति भगवान् श्रीकृष्ण स्ववश होते हुए भी कृपा करके माताके बन्धनमें आ गये। भगवान्‌की ऐसी कृपा कर्मत्यागी ज्ञानियोंको भी नहीं मिल सकी; फिर जो कर्ममें आसक्त हैं, उनको तो मिल ही कैसे सकती है। यह भक्तिका ही प्रताप है कि वे माताके बन्धनमें आ गये। नरेश्वर ! इसीलिये भगवान् ज्ञानके साधक आराधकोंको मुक्ति तो दे देते हैं, किंतु भक्ति नहीं देते। उसी समय बहुत-सी गोपियाँ भी शीघ्रतापूर्वक वहाँ आ पहुँचीं। उन्होंने देखा कि दही मथनेका भाण्ड फूटा हुआ है और भयभीत नन्द-शिशु बहुत-सी रस्सियोंद्वारा ओखलीमें बँधे खड़े हैं। यह देखकर उन्हें बड़ी दया आयी और वे यशोदाजीसे बोलीं ॥७-११॥
गोपियोंने कहा - नन्दरानी ! तुम्हारा यह
नन्हा-सा बालक सदा ही हमारे घरोंमें जाकर बर्तन- भाँड़े फोड़ा करता है, तथापि हम करुणावश इसे कभी
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/ @sanatanvaani-um8by
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