गीतोक्त साधना, कर्म, वर्ण और यज्ञ

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Yatharth Geeta - ASHRAM

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Күн бұрын

‘इमं विवस्वते योगम्’ (गीता, 4/1) भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- इस अविनाशी योग को मैंने आरम्भ में सूर्य से कहा। सूर्य ने इसे स्वयंभू आदि मनु से कहा। जिसके अनुसार एक परमात्मा ही सत्य है, परम तत्त्व है; वह कण-कण में व्याप्त है। योग-साधना के द्वारा वह परमात्मा दर्शन, स्पर्श और प्रवेश के लिये सुलभ है। भगवान द्वारा उपदिष्ट वह आदिज्ञान वैदिक ऋषियों से लेकर अद्यावधि अक्षुण्ण रूप से प्रवाहित है।
भगवान श्रीकृष्ण के हजारों वर्ष पश्चात् परवर्ती जिन महापुरुषों ने एक ईश्वर को सत्य बताया, गीता के ही सन्देशवाहक हैं। ईश्वर से ही लौकिक एवं पारलौकिक सुखों की कामना, ईश्वर से डरना, अन्य किसी को ईश्वर न मानना- यहाँ तक तो सभी महापुरुषों ने बताया; किन्तु ईश्वरीय साधना, ईश्वर तक की दूरी तय करना- यह केवल गीता में ही सांगोपांग क्रमबद्ध सुरक्षित है। गीता से सुख-शान्ति तो मिलती ही है, यह अक्षय अनामय पद भी देती है। देखिये श्रीमद्भगवद्गीता की टीका- ‘यथार्थ गीता’।
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