Guru dev beauti ful shabdawli. Very good. Excellent mahria ji . Kurda ram mahrania . Principal gsss gangiyasar dist jhunjhunu raj.
@SunilKumar-vani Жыл бұрын
Bahut hi sunder hai Vani
@ajayghottia56267 ай бұрын
Waa ji waa
@Tejalkadeewana66774 жыл бұрын
Veri nice
@SunilKumar-vani Жыл бұрын
Jai Ho
@subhkaranchayal18443 жыл бұрын
Wah guru ji
@mangatram81104 жыл бұрын
Bahut bahut.khob. ATI.sundar.
@nandram22704 жыл бұрын
बहुत ही सुन्दर भजन जय हो गुरू जी
@pawansuthar97695 жыл бұрын
Jio Thea jio unlimited
@dalvirchopra33183 жыл бұрын
Radhaswami.ji
@Jimjo-qu8kz Жыл бұрын
UDARAM ❤🎉
@begrajbhatiya58283 жыл бұрын
बहुत सुंदर बाणी सुनाई है
@sandeep-yl2ji2 жыл бұрын
बहुत अच्छा
@bharusingh-oj8ic Жыл бұрын
❤🎉🎉🎉🎉888
@subhashdharmikbhajan82843 жыл бұрын
Verry nice
@ganeshjangir9953 жыл бұрын
Jay Shri Krishna
@hanumanshayvaram28116 ай бұрын
इस भजन को सुनने में मुझे एक बिल्ली दिखाई दे रही है
@rajarajasthanirajeshmeghwa759210 ай бұрын
पूर्ण राम जी मेहरड़ा की जय हो
@चोगागाडरी3 жыл бұрын
बहुतबडीयाजिवोशनता
@glaramkagaubarmer42963 жыл бұрын
Ram ram dolo ram sad me ak he or nhe buaja
@ramsing85334 жыл бұрын
ईस संसार मे जोभी गुरु(गोड मैसेंजर)बने हुये हैं सब परमात्मा की आङ मे खुद कोही चमकाते हैं चेलों की कमाई पर संसार के सुख भोगते हैं और ब्रैन वाश करके चेलों को ताजीवन गुलाम बनाकर उनपर राज करते हैं।क्या कल्याण होगा मन घङंत ग्रंथ शास्त्रों की कहानी और चुटकुले सुनकर ?? परम गुरु तो परमात्मा(नि:शब्द) ही है वह बिमारी का ज्ञान नहीं देता सम्मुख होते ही बिमारी को जङ से समाप्त कर देता है... परमात्मा का कोई ज्ञान नहीं होता जिसे लेकर दुकान चलायी जा सके .. ज्ञान नहीं वह तो समाधान है जो बिना किसी भी तरह के भेद भाव के मनुष्य ही नहीं समस्त चराचर के शुन्य ,तत्त्व ,अतत्व,सजीव निर्जीव पिंड ब्रह्मंड जोभी उसकी शरण मे आजाये उसे निरबन्ध करके प्रकर्ति के माया जाल से मुक्त कर देते हैं। शरीर व मन से अनुभव में आनेवाले सब शुन्य से उत्पन्न होकर शुन्य में ही समाजाते हैं। सजीव या निर्जीव --जीव अवस्था ही है जो ऐक दूसरे पर आधारित हैं अर्थात सब परजीवी।आत्मनिर्भर कोई नहीं।जीव अवस्था द्वैत तथा अद्वैत वाली होती है पर आत्मिक अवस्था द्वैत अद्वैत से पार की अवस्था है। समरस,भेदभाव रहित, अजर,अमर,अखन्ड, अविनाशी, अजन्मा, विदेही, सर्व व्यापक, सर्व समर्थ,अकर्ता, सबका आधार सर्जन विसर्जन से परे,निर्लिप्त, निर्मोही अवस्था है। *नि: शब्द* ही ऐसा हैअन्य कोई नहीं। सावधान परमात्मा स्वयं परम गुरु है उसके लिए किसी मनुष्य देवी देवता पीर पैगम्बर अवतार को गुरु बना वो गे तो जबरदस्त धोका खाओगे। जितना जल्दी हो सके मन से इस तरह के गुरूवों को त्याग दें इसी में आपका कल्याण है नहीं तो गुरु महिमा पढा पढा कर जीवन का अमुल्य समय बर्बाद करके परमात्मा से बहुत दूर कर देंगे वस्तव मे नि:शब्द ,आत्मा, परमात्मा भगवान,गोड,वाहे गुरु, ईश्वर,अल्हा,व्याकरण के शब्द हैं यह मन को समझाने के लिए उस परम सत्य को बताने के ईसारे मात्र ही हैं।सत्य को तो बताया जा ही नहीं सकतावह मन बुद्धि के लिये अलख है और मन की औकात नहीं उसको अपने प्रयत्न से जान सके पर *नि:शब्द*अन्य समस्त ईसारों से ज्यादा सत्य को अच्छी तरह दर्शाता है क्योंकि परमात्मा कम्पलीट साईलेंस (पूर्ण शान्त) अवस्था है जिसे कोई भी परिस्थिति विचलित नहीं कर सके परम शांत अचल,अविचल,स्थित-प्रज्ञ,भावातीत और जो समष्टि का आधार है,समरस,भेदभाव रहित,सर्वव्यापक, अजर,अमर,अखन्ड, अविनाशी, अजन्मा, विदेही, सर्व व्यापक, सर्व समर्थ,अकर्ता, सर्जन विसर्जन से परे,निर्लिप्त, निर्मोही अवस्था है।ऐसी अवस्था नि:शब्द के अतिरिक्त क्या हो सकती है???? अन्य कुछ भी हो ही नहीं सकती। जितने भी पंथ, धर्म, ग्रंथ किताबें हैं यह मनुष्य क्रत हैं इनमें कभी भी आपको पूर्ण सत्य नहीं मिलेगा। पूर्ण सत्य का अनुभव मन के पार ही होता है। इस प्रथ्वी पर सबसे निक्रष्ट प्राणी मनुष्य ही है जिसने अपने स्वार्थ के लिए हवा, पानी,जमीन को प्रदूषित करदी उसकी क्रतियों पर विश्वास करते हो भयंकर धोका खावोगे अब भी चेत जावो। *नि: शब्द*आत्मा, परमात्मा ऐक ही हैै इसके अतिरिक्त कोई सत्य नहीं।
@ranihichibhaktisagarbhajan70674 жыл бұрын
9982593964
@rohitashparihar14803 жыл бұрын
Ram ram
@ramsing85334 жыл бұрын
तथा कथित महा पुरूषों का ज्ञान सुनकर या पढकर आप जो जैसा है उसे वैसा जान ही नहीं सकते सिर्फ भ्रम में ही रहोगे भ्रम का निवारण आप स्वयं ही समझ सकते हो। महापुरुषों के कथन के अनुसार आप ऐक जीवंत आत्मा हैं ओर आत्मा ऐसी है जिसे वायू सुखा नहीं सकती,अग्नी जला नहीं सकती पानी गीला नहीं कर सकता,अस्त्र सस्त्र जिसे काट नहीं सकते। क्या अभी आप ऐसा हैं???? सत्य को स्वीकार करें इसी में आपका हित है। यदि आप जैविक अवस्था ही धारण किये रखना चाहते हो तो अच्छी बात है इसमें तो सुख, दुःख, आनन्द,पीङा, जन्म ,मरण, चलता ही रहेगा। सिर्फ परमात्मा की शरण से ही बच सकते हो। मैं भी रहे और मोक्ष भी हो जाये असम्भव, मैं भी रहे और मुक्ती भी हो जाये असम्भव, मैं भी रहे और परमात्मा का अनुभव भी होजाये असम्भव। मैं मरेगी तभी परमात्मा का अनुभव होगा। मैं बहुत विशाल है अनन्त चैतन्य शरीरों का समूह है मैं ऐक शरीर मरा तो दूसरे शरीर में मैं बैठ जायेगी सभी स्थूल, शूक्ष्म, कारण, चैतन्य शरीर के मरने पर ही मैं मरेगा। मैं ही मन है। नि: शब्द क्रपा से ही मैं मरेगी ओर कोई उपाय नहीं।