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दोस्तों क्या आप जानते हैं की साहिर लुधियानवी को सबसे पहला ब्रेक किसने दिया था ? दोस्तों क्या आप बता सकते हैं की क्या कोई गायिका किसी संगीतकार का करियर तबाह कर सकती है तो जवाब है हाँ कर सकती है और इतिहास के पन्नों में से पता चलता है की ऐसा हुआ है और जिस संगीतकार ने साहिर को ब्रेक दिया था वही साहिर जब साहिर लुधियानवी जैसा बड़ा नाम हो बजाए तो इसी संगीतकार के करियर को तबाह करने में गवाह भी बने और सबूत भी , दोस्तों क्या आप जानते की फिल्म सरस्वती चंद्र का गाना चन्दन सा बदन की धुन सबसे पहले किस संगीतकार ने बनाई थी और किस फिल्म के लिए , ? और क्या आप जानते हैं साहिर ने ये गण उसी संगीतकार के लिए लिखा था जो बाद में साहिर ने अपना गीत वापस लेके फिल्म प्यासा के लिए गुरुदत्त को दे दिया वही गुरुदत्त जो छात्र जीवन में इसी संगीतकार के रूम पार्टनर हुआ करते थे और जो एक साथ मुंबई आये थे फिल्मों में काम करने लेकिन मुंबई के माया के ऐसे फंसे की दोनों फिल्म जगत में काम तो कर रहे थे लेकिन फिल्म में एक साथ कभी काम नहीं किए, दोस्तों आज के वीडियो की कहानी उसी संगीतकार की है जो कोरियोग्राफर भी थे क्योंकि डांस की विधिवत शिक्षा बैलेय डांसर उदयशंकर जी से लिया था , और सुमित्रा नन्दन पंत के सानिध्य में वो साहित्यकार भी थे लेकिन बने संगीतकार
सरदार मलिक (13 जनवरी 1925 - 27 जनवरी 2006) एक भारतीय हिंदी फिल्म संगीत निर्देशक और पार्श्व संगीतकार थे। इन्होने अपना बॉलीवुड का सफर 1940 के दशक में शुरु किया था और अपने करियर में उन्होने 600 से अधिक गानों के लिए संगीत निर्देशन किया था। उन्हें ठोकर (1953 फिल्म), औलाद (1954 फिल्म), बचपन (1963 फिल्म), महारानी पद्मिनी (1964 फिल्म), और विशेष रूप से उनकी सबसे बड़ी हिट संगीतमय फिल्म सारंगा (1961 फिल्म) में उनके काम के लिए जाना जाता है।
अपने करियर में 600 से ज्यादा गाने बनाने वाले सरदार मलिक ने शुरुआत से ही संगीत में अपना करियर बनाने की ठानी थी। अपने इसी ख्वाब को पूरा करने में वह सफल भी हुए थे। लेकिन फिर अचानक उनके जीवन में एक ऐसा कुछ हुआ, जिसकी वजह से सरदार मलिक ने हमेशा-हमेशा के लिए संगीत से मुंह मोड़ने की ठान ली थी। पने इस सपने को असलियत में उतारने के लिए सरदार ने खूब मेहनत की और उन्होंने सन 1940 में अपने करियर की शुरुआत कर दी थी। साल 1940 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले सरदार मलिक को पहला ब्रेक मिलने में पूरे 11 साल का लंबा समय लगा था। जी हां, सरदार मलिक को पहला ब्रेक 1951 में आई फिल्म 'स्टेज' से मिला था। इतना लंबा इंतजार कर ब्रेक पाने वाले सरदार मलिक को पहचान पाने के लिए कई ठोकर खानी पड़ी थीं। दरअसल, साल 1953 में आई फिल्म 'ठोकर' से ही सरदार मलिक ने इंडस्ट्री में पहचान बनाई थी। बस फिर क्या था अपने संगीत के दम पर सरदार ने बॉलीवुड में ऐसी 'सरदारी' पाई, जिसकी बदौलत उन्हें इंडस्ट्री का हर शख्स जानने लगा था।
इसके बाद सरदार मलिक ने बहुत सी फिल्मों में अपने संगीत के लिए वाहवाही बटोरी थी, लेकिन साल 1961 में आई फिल्म 'सारंगा' ने उनकी किस्मत ही पलट दी थी। ‘सारंगा’ के गाने इतने मशहूर हुए कि मनोरंजन जगत में वह चर्चाओं का विषय बन गए। इसका नतीजा यह हुआ कि पूरी इंडस्ट्री में सभी बस अपनी फिल्म के गानों का निर्देशन उन्हीं से कराना चाहते थे। ऐसा करते- करते कुछ वक्त में सरदार मलिक बॉलीवुड के जाने-माने भारतीय संगीत निर्देशक और संगीतकार बन गए थे। आलम यह था कि सरदार मलिक के पास लगातार फिल्मों के ऑफर आ रहे थे, लेकिन फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने संगीत से दूरी बनानी शुरू कर ली थी। दरअसल, एक फिल्म के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान एक मशहूर गायिका और गीतकार के बीच हुए मतभेद की वजह से सरदार मलिक को नुकसान झेलना पड़ा था। वह एक बहुत बड़ी सिंगर थीं और उस गीतकार का भी फिल्मी दुनिया में बहुत दबदबा था। इसी वजह से सरदार मलिक को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। इस विवाद के बाद उनके हाथ से कई फिल्में निकल गई थी और वह संगीत से दूर होते चले गए थे।फिल्मी करियर से परे सरदार मलिक का एक छोटा सा खुशहाल परिवार था, जिसमें उनकी पत्नी बिलकिस और उनके तीन बेटे थे। सरदार मलिक के तीनों बेटे अनु मलिक, डब्बू और अबू मलिक ने संगीत में अपना करियर बनाया। लेकिन अनु मलिक के अलावा सरदार के दोनों छोटे बेटे वह कमाल नहीं दिखा पाए, जैसा उनके बड़े भाई ने कर दिखाया था। हालांकि, अब सरदार ने पोते अमाल मलिक और अरमान मलिक इंडस्ट्री में गायकी में अपना हुनर दिखा अपने दादा का नाम रौशन कर रहे हैं। भारतीय हिंदी फिल्मों के संगीत निर्देशक और संगीतकार सरदार मलिक का निधन 81 साल की उम्र में 27 जनवरी 2006 को हो गया था।
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SPECIAL THANKS TO
DHEERAJ BHARDWAJ JEE (DRAMA SERIES INDIAN),
ARVIND PATHAK
THANKS FOR WATCHIN GOLDEN MOMENTS WITH VIJAY PANDEY