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ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।
इन्द्र - संयम के जरिए बीमारियों, हिंसा के भाव रोकने व भूत-प्रेत या अनिष्ट से रक्षा में इन्द्र गायत्री मंत्र प्रभावी माना गया है |
मंत्र शक्ति से कितने ही प्रकार के चमत्कार एवं वरदान उपलब्ध हो सकते हैं प्रयोग करने से पूर्व उसे सिद्ध करना पड़ता है। सिद्धि के लिए साधना आवश्यक है। अभीष्ट लक्ष्य में श्रद्धा जितनी गहरी होगी उतना ही मन्त्र बल प्रचण्ड होता चला जायगा। श्रद्धा अपने आप में एक प्रचण्ड चेतन शक्ति है। विश्वासों के आधार पर ही आकाँक्षाएँ उत्पन्न होती हैं और मनःसंस्थान का स्वरूप विनिर्मित होता है। बहुत कुछ काम तो मस्तिष्क को ही करना पड़ता है। शरीर का संचालन भी मस्तिष्क ही करता है। इस मस्तिष्क को दिशा देने का काम अन्तःकरण के मर्मस्थल में जमे हुए श्रद्धा, विश्वास को है।
इंद्र देव हिन्दू धर्म के भगवान हैं। हिन्दू धर्म में इन्हें देवों का राजा या देवराज भी कहा जाता है। स्वर्ग लोक का देवता माने जाने वाले इन्द्र देव को वर्षा का स्वामी भी माना जाता है। पुराणों के इतर वेदों में देवराज इन्द्र को सबसे शक्तिशाली देवता माना गया है। देवराज इन्द्र हिन्दू धर्म में बेहद विशिष्ट स्थान रखते हैं। ऋग्वेद के अनुसार एक बार एक वृत्र नामक राक्षस ने अपनी माया जाल से पूरे आकाश में अंधकार कर दिया तथा जल और प्रकाश को अपने वश में कर लिया था। इससे डर कर सभी लोगों ने देव राज इंद्र का आवाहन किया। इंद्र देव ने अपनी शक्ति से दानव वृत्र का वध किया तथा प्रकाश और जल को मुक्त कराया। इसके बाद से ही वह वर्षा के राजा बन गए।
सिर्फ ऋग्वेद ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिन्दू पुराणों और कथाओं में इन्द्र देव के विषय में कई कथाएं हैं। कई बार इनका वर्णन एक ऐसे देवता के रूप में किया गया है जो बेहद घमंडी और स्वर्ग की सत्ता के लिए लालायित रहते हैं। जैसे महाभारत में कृष्ण लीलाओं के प्रसंग में वर्णन है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को इन्द्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का सुझाव दिया तो गुस्से में इंद्र देव ने भयंकर जल वर्षा की। इसी तरह कई जगह इन्द्र देव के बारे में ऐसी बातें लिखी गई हैं। परंतु वेदों में इंद्र देव को एक शक्तिशाली देवता माना गया है।
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