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@highonshayari
इंतज़ार करने वाले व्यक्ति की गिनती तो मुमकिन है, लेकिन इंतज़ार कोई एक होता है भला? परतों को खोलो को पता चले कि एक इंतज़ार के अंदर कितने और इंतज़ार जज़्ब होते हैं। इस कविता में अनुर्वी मेहरा उन ही परतों को खोल कर सुना रही हैं अपनी कविता इंतज़ार।