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| Chetan Das ki Bawdi | इस बावड़ी की सुरंग का क्या है राज? ऐसी बावड़ी जो दिन में तो खोदी जाती थी लेकिन रात को भर जाती थी! @Gyanvikvlogs
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लोहार्गल में एक बावड़ी निर्मित है जिसे चेतनदास की बावड़ी (Chetan Das ki Bawadi) कहा जाता है।इस भव्य बावड़ी के निर्माण में कई कथाएं प्रचलित है, कहते हैं कि जब इसका निर्माण कार्य चल रहा तब जैसे ही दिन में बावड़ी के जमीन खोदते रात को मिट्टी निकालने के लिए किया गया खड्डा पुनः भर जाता।फिर भैरों जी की प्राण प्रतिष्ठा की गयी और इसका निर्माण विधिवत शुरू हुआ।इसी बावड़ी के पास ही पहाड़ी पर सूर्यकुंड और सूर्य मंदिर बने हुए हैं!
चेतनदास जी लोहार्गल के संत थे, तपस्वी थे और लोहार्गल की पावन भूमि को और भी अधिक पवित्र किया।लोहार्गल धाम से थोड़ा पहले उनका धाम स्थित है।इसी आश्रम में गोपाल जी का मंदिर भी बना हुआ है। चेतनदास जी के धाम के पास ही उक्त उल्लेखित बावड़ी स्थित है।यह पांच तलों के स्वरूप में है।हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि ये पहले सात तल के रूप में थी लेकिन एक समय बीत जाने के कारण मिट्टी की वज़ह से दो तल ढक गए।देखने में भव्य यह बावड़ी काफी साफ सुन्दर है।बावड़ी के पीछे चेतनदास जी का धाम है,स्थानीय लोगों और भ्रमण कर चुके लोगों का कहना है कि धाम में आज भी चेतनदास जी चरणों के निशान मौजूद है।
बावड़ी निर्माण के संदर्भ में कथायें हैं कि स्थानीय राजा चेतनदास जी के वचनों से अभिभूत था और उनका अनुयायी था, और चेतनदास जी के वचनों से इस राजा की मनोकामना पूर्ण हो गयी और इस उपलक्ष में वह चेतनदास जी के पास आया और बोला कि आप आदेश करें - मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ? तो चेतनदास जी ने उन्हें बावडी बनाने के लिए कह दिया यह सोचकर कि यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की प्यास बुझेगी।लगभग 1673 में बनी इस बावड़ी के आसपास कई मंदिर, कुंड आदि हैं।नजदीक जगह बरखंडी के बरखंडी महाराज और चेतनदास जी गुरु भाई थे।यहीं उत्तर दिशा में बावन भैरों और चौंसठ जोगणी की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं।
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