Namosatu Gurudev Namosatu Gurudev Namosatuosatu Gurudev Aapki Jiwan Sadhna Ki Sukhsata And Mangalkamna Karte Hai M Vinod Usha Prashant Prerna Pokarna Raipur Chhattisgarh Bagdi Nagar Rajasthan
@avnipatni4444 Жыл бұрын
आज आपके श्री मुख से अष्टन्निहक पर्व की महिमा का स्वरुप जाना मन बहुत हर्षित हुआ।पहली बार विस्तृत रूप से जाना। गुरुवर आपका बहुत बहुत आभार। नमोस्तु भगवान। ताराचंद पाटनी नसीराबाद ( राज)
@smitawalunj25923 жыл бұрын
Jai jinendra 🙏🙏🙏
@jitendrachauhan46413 жыл бұрын
Nmoistute sdgurdeva sbhi sant mnsa pad prachaalan pradichana dandandwat shat shat pranam mnsa dhup dep chatra dwaja chapan bhog chatiso vyanjan pan supari long ilaychi nariyal fal mevaye misthan singhasan arti kru kpur ki bati jaki jyoti jge din rati namestesye namestesye namestesye nana sugandhi puspan pujyam sodsopachar sastangam pranat istut bhuvidha om shanti
@sudhapatil10833 жыл бұрын
Namostu Gurudev ki jai jai shree guru dev ji
@manahourmagadum77743 жыл бұрын
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
@SampradaJ5 жыл бұрын
#***# धर्म-क्रियाओं का उद्देश्य क्या हो! #***# अष्टान्हिका पर्व: सबसे बडा पर्व: => अष्टान्हिका पर्व के आठ दिन मंगल दिन होते है। => प्रभु भक्ति से पूर्ण, प्रभु भक्ति युक्त होने से यह पर्व सबसे बडा पर्व है। => कार्तिक, फागुन और आषाढ़ माह के अंतिम आठ दिवस स्वर्गों के देव आठवें द्वीप नन्दीश्वर द्वीप जाकर प्रभु भक्ति में अखंड लीन रहते है। => आठ दिन लगातार सच्चे-देव वीतराग जिनेंद्र भगवान जी की भक्ति, भक्ति, भक्ति! समवशरण में भी इतनी लगातार भक्ति नहीं होती। => तीर्थाटन का पर्व अष्टान्हिका पर्व। => स्वर्ग के देवों के विमानों में भी अकृत्रिम चैत्यालय होते है अपितु अष्टान्हिका में अन्य जिनालयों में जाकर वे भक्ति करते है। => कभी किन्हीं दूसरे जिनालय जी में जाने से भक्ति का उत्साह, विशुद्धि अधिक होती है। => जो मजा तीर्थ में है वह स्वयं साक्षात प्रत्यक्ष तीर्थंकर में भी नहीं! क्योंकि समवशरण में साक्षात विराजित तीर्थंकर भगवान जी के चरण स्पर्श या स्पर्श गणधर भी नहीं कर सकते। => समवशरण में दूर से ही भगवान जी के दर्शन, पूजन करने पडते है। => अपितु मन्दिर जी में भगवान जी के प्रतिमा जी के अभिषेक, चरण-स्पर्श, सेवा-पूजन आदि सब कर सकते है सो अष्टान्हिका में तीर्थाटन कर मंदिर जी में वीतराग-जिनेंद्र भगवान जी के अहर्निष भक्ति करने का महत्व, आनंद अलग ही है, बहुत है, बडा है। => 4 मंगल: द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव मंगल 01. द्रव्य-मंगल: => मंगल: पुण्य, पवित्र। => जिस जीवों के पुण्य-भाव जग गये, सम्यग्दर्शन प्रकट हो गया, जो सच्चे-भगवान जी के चरण-शरण में पहुँच गये या पहुँचने के भाव रखते है, मुक्ति की राह पर आ चुके है वे सब जीव द्रव्य-मंगल है। => अनुकूलता, सुविधा, सुख भले सभी को प्राप्त हो अपितु यह सब होकर भी पुण्य-भाव बहुत कम जीवों के ही जगते है। => पुण्य-भाव विरले जीवों के ही जगते है। => जिसकी होनहार अच्छी होती है वही अच्छे, शुभ कामों में लगता है और अन्य जीव विषय-कषायों में ही लीन रहते है। 02. क्षेत्र-मंगल: => सिद्ध-क्षेत्र, तीर्थ-क्षेत्र, अतिशय-क्षेत्र यह क्षेत्र मंगल क्षेत्र है। => क्षेत्र-मंगल की विशुद्धि और ऊर्जा अधिक प्रभावी होती है। => क्षेत्र-मंगल पर पूजन, विधान, अनुष्ठान आदि करने का विशेष महत्व और फल होता है। => विधान हेतु बीजाक्षरों युक्त मंडल होना जरूरी है। मंडल विभूतियों को बुलाने का दिव्य गुप्त, बीजाक्षर युक्त चित्र होता है। 03. काल-मंगल: => पर्व काल निसर्गत: शुभ, पवित्र काल होता है। 04. भाव-मंगल: => भावों का मंगल होना ही अतिशय का कारण होता है। => मंगल भाव याने शुभ-भाव, पवित्र-भाव। => भावपूर्वक किया गया सिध्दचक्र विधान संसार के षटकर्म खतकर्मों द्वारा अर्जित पापों को धो देता है। => मेरी अवस्था पर मुझे ध्यान देना है प्राप्त-अप्राप्त व्यवस्थाओं पर नहीं। => शुभ, पवित्र, सकारात्मक भावों से, मेरे भावों में निरंतर विशुद्धि होनी चाहिये, मेरी अवस्था (मानसिकता) निरंतर पवित्र, शुद्ध, शांत, सरल, सकारात्मक होनी चाहिये इस संकल्प के साथ दर्शन, पूजन, विधान आदि कोई भी धर्म-क्रिया करनी चाहिये। => धर्म-क्रिया में सहभाग के 4 कारण: =>1. माता-पिता या परिवार-परिजन कहते-करते है या परंपरा है सो, =>2. धर्म-क्रिया, विधान का महात्म्य सुना है हमें भी अपने कष्ट, संकट, विपदा दूर करनी है सो, =>3. गाढा पुण्य अर्जित करने हेतु, =>4.*** धर्म-क्रिया आत्म-शुद्धि का आधार है मुझे मेरी भाव विशुद्धि की वृद्धि करनी है सो मुझे धर्म-क्रिया में सहभाग लेना है। =>4. धर्म-क्रिया प्रयोजन (उद्देश्य, ध्येय, हेतु) पूर्वक ही करनी चाहिये तभी सार्थक है। => धर्म-क्रिया का प्रयोजन परिणामों की निर्मलता, सम्यकत्व की दृढ़ता, कर्म निर्जरा, विकसित-विशुद्ध मानसिकता, आत्म-शुद्धि ही होना चाहिये। => मैना-सुंदरी ने कुष्ठ मिटाने हेतु सिद्ध-चक्र विधान नहीं किया था अपितु उनके आत्म-शुद्धि के प्रयोजन से किये भावपूर्वक विधान करने से उनके पति और अन्य के कुष्ठ दूर हो गये। => ज्ञानी कर्म काटता है मतलब समतापूर्वक कर्म विपाक सहन करता है रोता आदि नहीं। => अज्ञानी कर्मों को भोगता है मतलब कर्मोदय में आकुल, व्याकुल होता है, रोता है, आर्त होता है। =>*** पाप त्यागने हेतु धर्म-क्रिया करो, पाप-काटने (पापों का फल कम करने के लिये के लिये नहीं)। =>*** पाप त्याग कर जीवन मंगल बनाने हेतु धर्म-क्रिया करो, करनी है। =>*** धर्म-क्रिया का प्रयोजन/उद्देश्य: मुझे पापों का त्याग करना है! ~~~ णमो लोए सव्वसाहूणं। ... Thank U! For Sharing ... ~~~ जय जिनेंद्र, उत्तम क्षमा! ~~~ जय भारत! (2019 July 18 Thu. 08:13-09:13 @ H)