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केशव ना चिंधेला मार्गे , चालवु पड़शे ,
नित्य साधना करी संगठन साधवु पड़शे ।
ओ बन्धु जागवु पड़शे .... ॥धृ ॥
भेदभावना , स्वार्थ साधना देशने दुर्बल करता ।
जाति-पन्थ-भाषाना झगड़ा , विषधर बनीने डसता ।
अन्तरनु एकात्मरूप प्रगटाववु पड़शे ..।
नित्य साधना करी ..... ॥१ ॥
राष्ट्रना धन भण्डारों , नित नित , विदेशमा वही जाता ।
संस्कृतिना मोंघेरा मूल्यों , जतन बिना करमाता ।
सूत्र स्वदेशीनु घर - घर पहोचाडवु पड़शे ।।
नित्य साधना करी ...॥ २ ॥
राष्ट्र जीवनने खण्डित करती , विविध प्रपंच लीला ।
जन - जनना मन भ्रमित करती , जूदी विचारधारा ।
हिन्दू चिन्तनानु अमृत छलकाववु पड़शे ।
नित्य साधना करी .... ॥ ३ ॥
केशव ना चिंधेला मार्गे , चालवु पड़शे ,
नित्य साधना करी संगठन साधवु पड़शे ।
ओ बन्धु जागवु पड़शे .... ॥धृ ॥
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