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Nauha-
Kata Gaya Hussain ka Maqtal mein jab Gala
Bas kuch hi Fasle se Bahen Dekhti Rahi
काटा गया हुसैन का मक़तल में जब गला,
बस कुछ ही फासले से बहेन देखती रही
کاٹا گیا حسین کا مقتل میں جب گلا
بس کچھ ہی فاصلے سے بہن دیکھتی رہی
Poet- Waiz Hasan Sultanpuri
Reciters- Zuhair Qain, Haider Raza, Abutalib Rizvi, Abbas Raza, Mohammad, Mohammad Sajdin, Mohammad Abid, Ghadeer Haider, Naqi Raza
6 Rabi-ul-Awwal 1441/2019
18 Taboot Karari, Kaushambi
Venue- Karari, Kaushambi
Lyrics (Hindi)
काटा गया हुसैन का मक़तल में जब गला
बस कुछ ही फासले से बहेन देखती रही
सर तन से हो रहा था बरादर का जब जुदा
बस कुछ ही फासले से बहेन देखती रही
1.
घेरा था ज़ालिमों ने शहे मशरकेन को
ज़ैनब बचाने पायी ना अपने हुसैन को
सुए दरिया मुडकर देखती थीं ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
घेरा था ज़ालिमों ने शहे मशरकेन को
ज़ैनब बचाने पायी न अपने हुसैन को
बेकस बहेन तड़पती रही कुछ न बस चला
2.
खंजर तले हुसैन की गर्दन को देखकर
अये भाई कह के गिरती थी दुखिया जमीनपर
सुये दरिया मुड़कर देखती थी ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
खंजर तले हुसैन की गर्दन को देखकर
अये भाई कह के गिरती थी दुखिया जमीनपर
वो वक़्त एक बहेन पे क़यामत का वक़्त था
3.
प्यारी बहेन हुसैन की सर पीटती रही
सूखे गले पे भाई के चलती रही छुरी
सुये दरिया मुड़ कर देखती थी ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
प्यारी बहेन हुसैन की सर पीटती रही
सूखे गले पे भाई के चलती रही छुरी
जंजीर बेकसी ने कसी थी कुछ इस तरह
4.
सीने पे जब हुसैन के शिमरे लईं चढ़ा
ज़ैनब ने सर को पीट के दरिया का रुख किया
सुये दरिया मुड़ कर देखती थी ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
सीने पे जब हुसैन के शिमरे लईं चढ़ा
ज़ैनब ने सर को पीट के दरिया का रुख किया
उस वक़्त थरथराने लगी अर्ज़े कर्बला
5.
परदेस में अली की दुलारी थी बेक़रार
रोती थी ज़ार ज़ार तड़पती थी बार बार
सुये दरिया मुड़ कर देखती थी ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
परदेस में अली की दुलारी थी बेक़रार
रोती थी ज़ार ज़ार तड़पती थी बार बार
हर सिम्त से हुसैन पे होती रही जफ़ा
6.
ज़ैनब पे कर्बला में जो कोहे आलम गिरा
टूटे ना वो पहाड़ किसी पे भी आये खुदा
सुये दरिया मुड़ कर देखती थी ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
ज़ैनब पे कर्बला में जो कोहे आलम गिरा
टूटे ना वो पहाड़ किसी पे भी आये खुदा
भाई को क़त्ल करता रहा शिमर बेहया
7.
नरगे में ज़ालिमो के थी बेटी बुतूल की
कुछ भी ना करने पायी नवासी रसूल की
सुये दरिया मुड़ कर देखती थी ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
नरगे में ज़ालिमो के थी बेटी बुतूल की
कुछ भी ना करने पायी नवासी रसूल की
भाई का सर निगाहों के आगे ही कट गया
8.
वाएज़ ना लिख सकेगा कभी भी वो ग़म कोई
ज़ैनब के दिल पे तेग़ जो आशूर को चली
सुये दरिया मुड़ कर देखती थी ज़ैनब
अपने ग़ाज़ी को सदा दे रही थी ज़ैनब
वाएज़ ना लिख सकेगा कभी भी वो ग़म कोई
ज़ैनब के दिल पे तेग़ जो आशूर को चली
भाई का खून खाक में मिलता रहा रज़ा
WAIZ HASAN SULTANPURI
Access-:
kata gaya husain ka maqtal mein jab gala
bas kuch hi fasle se bahen dekhti rahi
18 Taboot Karari
Anjuman sipah-e-hussaini
Bhanauli sadat nohay 2019
Waiz Hasan Sultanpuri
azadari bhanauli
nohay 2019
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