Рет қаралды 79
शास्त्रों पर मंत्रणा और विभिन्न विचारों का अध्ययन कर संतान धर्म में उसका समावेश करने के लिए आदि शंकराचार्य ने आठवीं शती में कुंभ में नया प्रयोग प्रारंभ किया ।इसके पूर्व संता समागम ,स्नान ,कल्पवास ,दान आदि कुंभ पर्व में प्रचलित थे ।बाणभट्ट के हर्ष चरित में वर्णन है की राजा हर्ष वर्धन ने कुंभ ने संगम तट पर अपना सर्वस्व दान कर दिया था। नकछत्रों का योग की गणना - हमारे ऋषि कुल ने हजारों वर्ष में की जिसे विश्व मान रहा है