(१)ब्रह्म को क्यों ऐसे जगत के रचने की इच्छा होती हैं, जिसमे दुःख ही दुःख हैं और फिर स्वयं ही उस से मुक्ति पाने के लिए श्रुति स्मृति द्वारा उपदेश दिलवाता हैं (२) यदि यह कहा जाये की जगत और उसके अंतर्गत सुख दुःख सब मिथ्या और भ्रम रुप ही हैं, केवल एक ज्ञान स्वरुप ब्रह्म ही सत्य हैं तो ब्रह्म ने इस भ्रम को क्यों फैलाया और निर्भ्रांत ब्रह्म में भ्रम कैसा? (३) अविद्या से ब्रह्म जगत की रचना करता हैं और अविद्या ब्रह्म से अभिन्न हैं फिर अविद्या और जगत से छुटकारा कैसे संभव हो सकता हैं? (४) ब्रह्म की शक्ति रुप अविद्या से जगत की उत्पत्ति हैं, इसलिए विद्या अर्थात ज्ञान द्वारा ही इससे मुक्ति हो सकती हैं, किन्तु अविद्या के अंतर्गत होने के कारण सारे साधन श्रुति और स्मृति भी अविद्या रुप ही होंगे विद्या और ज्ञान ब्रह्म से बाहर कहाँ से लाया जा सकता हैं (५) सर्वज्ञ ज्ञानस्वरुप ब्रह्म की शक्ति माया अर्थात अविद्या नहीं होनी चाहिए प्रत्युत निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान होना चाहिए (६) और यदि उसमे संसार के रचने की इच्छा भी हो तो वह निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान के साथ हो न की माया और अविद्या के साथ (७) मदारी पैसा कमाने अथवा अपने से बड़े आदमियों को खुश करने के प्रयोजन से शोबदे और तमाशे दिखलाता है आप्तकाम ब्रह्म को इस मायाजाल के फैलाने में प्रयोजन क्या है? (८) यदि अपनी महिमा और प्रभुता दिखलाने लिए, तो यह किसको दिखलाना? जब की एक ब्रह्म के सिवा दूसरा कोई है ही नहीं (९) यदि अपनी प्रभुता और महिमा दिखलाने के लिए जीवों को उत्पन्न करता है तो इस प्रकार की महिमा और प्रभुता दिखलाने की अभिलाषा होना ही महिमा और प्रभुता के अभाव को सिद्ध करता है (१०) यदि बिना किसी अपने विशेष प्रयोजन के ब्रह्म द्वारा संसार की रचना केवल जीवों के कल्याण अर्थात भोग और अपवर्ग के लिए स्वाभाविक मानी जाये तो यह सांख्य और योग का ही सिद्धांत आगया
@SarvpriyArya2 жыл бұрын
"GOD does not like us, in all sense HE hates us. We are GOD's unwanted children so be it" - Fight Club
@Shashank21043 жыл бұрын
Acharya Pranam,wishing you good health on this new years’s eve waiting for you to shed some knowledge on Sartre’s and Simone de Beavoir’s work on existentialism is a humanism.Also today I thank you for clearing my concepts on the Transcendental work of Kant and I also read about Acharya Rajneesh’s letter to Wittgenstein reminding him of his fallacy with his statement ‘ what must be said must be said clearly otherwise one must remain silent ‘.
@ShivamSonkar-q5s Жыл бұрын
sir please suggest book to eistentialism for upsc
@Unknown120xash3 жыл бұрын
Sir please dada ji ka philosophy ka video upload kijiye please sir inke video dekhne k bad koi channel dekhne k man nhi karta h lgta hai bas dekhte rahe indian philosophers aur kuch ancient k philosophers bach gaye h unpe video laye
@TheQuestURL3 жыл бұрын
Please suggest some names...
@Unknown120xash3 жыл бұрын
@@TheQuestURL niccolo machiaveli,Thomas hobbes,John locke, Rousseau, John Stuart mill,hegel,gramsci,Hannah arendt ,kautilya ,Buddhist,aurobindo ghosh ,,syed Ahmed khan please please sir Dada ji ye philosopher ko cover kara dijiye exam aa raha h please sir hath jorta hun
@saimaiqbalmalik53613 жыл бұрын
Thank you Sir. Please add English subtitles
@TheQuestURL3 жыл бұрын
Saima bahan Yet we are not able due to very limited resources of us May be in future 🙏
@pranjalpathak1153 жыл бұрын
(१)ब्रह्म को क्यों ऐसे जगत के रचने की इच्छा होती हैं, जिसमे दुःख ही दुःख हैं और फिर स्वयं ही उस से मुक्ति पाने के लिए श्रुति स्मृति द्वारा उपदेश दिलवाता हैं (२) यदि यह कहा जाये की जगत और उसके अंतर्गत सुख दुःख सब मिथ्या और भ्रम रुप ही हैं, केवल एक ज्ञान स्वरुप ब्रह्म ही सत्य हैं तो ब्रह्म ने इस भ्रम को क्यों फैलाया और निर्भ्रांत ब्रह्म में भ्रम कैसा? (३) अविद्या से ब्रह्म जगत की रचना करता हैं और अविद्या ब्रह्म से अभिन्न हैं फिर अविद्या और जगत से छुटकारा कैसे संभव हो सकता हैं? (४) ब्रह्म की शक्ति रुप अविद्या से जगत की उत्पत्ति हैं, इसलिए विद्या अर्थात ज्ञान द्वारा ही इससे मुक्ति हो सकती हैं, किन्तु अविद्या के अंतर्गत होने के कारण सारे साधन श्रुति और स्मृति भी अविद्या रुप ही होंगे विद्या और ज्ञान ब्रह्म से बाहर कहाँ से लाया जा सकता हैं (५) सर्वज्ञ ज्ञानस्वरुप ब्रह्म की शक्ति माया अर्थात अविद्या नहीं होनी चाहिए प्रत्युत निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान होना चाहिए (६) और यदि उसमे संसार के रचने की इच्छा भी हो तो वह निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान के साथ हो न की माया और अविद्या के साथ (७) मदारी पैसा कमाने अथवा अपने से बड़े आदमियों को खुश करने के प्रयोजन से शोबदे और तमाशे दिखलाता है आप्तकाम ब्रह्म को इस मायाजाल के फैलाने में प्रयोजन क्या है? (८) यदि अपनी महिमा और प्रभुता दिखलाने लिए, तो यह किसको दिखलाना? जब की एक ब्रह्म के सिवा दूसरा कोई है ही नहीं (९) यदि अपनी प्रभुता और महिमा दिखलाने के लिए जीवों को उत्पन्न करता है तो इस प्रकार की महिमा और प्रभुता दिखलाने की अभिलाषा होना ही महिमा और प्रभुता के अभाव को सिद्ध करता है (१०) यदि बिना किसी अपने विशेष प्रयोजन के ब्रह्म द्वारा संसार की रचना केवल जीवों के कल्याण अर्थात भोग और अपवर्ग के लिए स्वाभाविक मानी जाये तो यह सांख्य और योग का ही सिद्धांत आगया