प्रणाम गुरुजी🌹🙏, हम अभी मुख्यता मनुष्यता के तल पर ही है तो मन के अस्तित्व को पूर्णता नकारा नहीं जा सकता यद्यपि मन तो रहेगा वरन हमे उसके द्वारा रचित भाव, संकल्प इत्यादि के मोह एवं दंश को ध्यान/ होश रूपी वज्र से परास्त करते जाना है। यह वज्र हमे आपकी ही अत्यंत करुणामयि अनुकंपा से प्राप्त हुआ है, आपका बहुत बहुत धन्यवाद भगवन 🙏
@DrPnDubeySpirituality5 ай бұрын
पुनीत जी इसीलिए मैं आप को ऐसी जगह ले जाना चाह रहा हूँ जहाँ मन का अस्तित्व ना हो,जहाँ सिर्फ़ चैतन्य का ही अस्तित्व है। बस इसके लिए आप से आप का श्रम रूपी सहयोग चाहता हूँ,प्रयास रहित प्रयास चाहता हूँ, क्योंकि सत्य को पाने के लिए हमे क़ीमत चुकानी पड़ती है।सत्य हमारे अहंकार की बलि लेता है🙏
@mixedmagicamu55385 ай бұрын
Bahut bahut dhanyawad guruji
@vijaydahiwal36072 ай бұрын
,🙏 आपका प्रवचन सुनकर बहुत धन्य हुए|धन्यवाद. 💐💐💐🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
डाक्टर जी मन रूपी ओजार तो तभी तैयार होता है जब व्यक्ति कुछ को चाहता है कुछ को नही चाहता,(अथवा द्वैत पैदा होना)अगर किसी की चाहत ही गिर गयी तब मन कहा रह गया। कबीर ने भी कहा कि चाह गयी चिन्ता मिटी मनवा बेपरवाह।जिसको कछु ना चाहिये वो शाहो का शाह।। दुसरा आप खुद बता रहे है कि स्वीकार भाव केवल सजगता मे घटता है या केवल चेतनता की स्थिति मे होता है ,तो सब स्वीकार आपसन भी गलत नजर नही आ रहा है। अतः मामला स्पस्ट नही हुआ
@rajeshdixit19574 күн бұрын
Abhi aapko kuchh nahin maloom aapka Gyan Guru gobar hai