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महाभारत का अध्ययन करते हुए उन व्याख्याओं से आपका सामना होता है जो स्पष्टत: ऐसे अस्त्रों-शस्त्रों की जानकारी प्रदान करते हैं जिनकी तुलना केवल वर्तमान के परमाणु हथियारों से ही की जा सकती है। यह विषय तब अधिक रोचक हो जाता है जबकि हम उस व्यक्ति का मनोविज्ञान परखते हैं जिसे आधुनिक परमाणु हथियारों का जनक कहा जाता है, अर्थात जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर। क्या यह केवल इत्तफाक है कि सैद्धान्तिक भौतिकविद् तथा अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक ओपेनहाइमर ने अपने प्रयासों से संस्कृत सीखी और भगवद्गीता का गहन अध्ययन किया था? क्या इसे ओपेनहाइमर का भारतीय धर्मग्रंथों के प्रति लगाव नहीं कहा जाएगा कि जब उन्होंने वर्ष 1933 में कार खरीदी, तो उसका नाम ‘गरुड़’ रखा। अब यह स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं रहा जाती कि गरूड को भगवान विष्णु का वाहन कहा जाता है। वही भगवान विष्णु जिनके आठवे अवतार थे श्रीकृष्ण। वही श्रीकृष्ण जिन्होंने न केवल महाभारत के युद्ध में अपनी महति भूमिका निर्वहित की अपितु अर्जुन के माध्यम से विश्व को वह महान संदेश दिया जो आज श्रीमद्भाग्वत गीता के रूप में विश्वविख्यात है। यह आश्चर्यजनक संयोग इस ओर भी इशारा करता है कि महाभारतकालीन महासंहारक दिव्यास्त्रों और वर्तमान के परमाणु हथियारों के बीच क्या कोई अंतरसंबंध है?
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