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प्रियप्रवास अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध" की खड़ी बोली हिन्दी की काव्य-रचना है। हरिऔध को काव्यप्रतिष्ठा "प्रियप्रवास" से ही मिली। इसका रचनाकाल सन् 1909 से सन् 1913 है। "प्रियप्रवास" मूलतःविरहकाव्य है। कृष्णकाव्य की परंपरा में होते हुए भी, उससे भिन्न व नाविन्य है। "हरिऔध" जी ने कहा है - मैंने कृष्ण को इस ग्रंथ में एक महापुरुष की भाँति अंकित किया है, ब्रह्म करके नहीं। कृष्णचरित को इस प्रकार अंकित किया है जिससे आधुनिक लोग भी सहमत हो सकें।