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भारतीय इतिहास की पुरातनता पर बात करते हुए हम अब भी सिंधु घाटी सभ्यता से पहले का रुख नहीं करते आखिर क्यों? क्या समुद्र तल में प्राप्त हुई द्वारिका नगरी और पुरावशेष एक ऐसी सभ्यता का स्पष्ट अभास नहीं हैं जो सिंधुघाटी सभ्यता से पुरानी भी थी, भिन्न भी थी और उन्नत भी? हम जानते हैं कि श्रीकृष्ण द्वारा मथुरा से पलायन करने के पश्चात द्वारिका नागरी किन परिस्थितियों में बसाई गयी थी। हमें यह भी संज्ञान लेना होगा कि श्रीकृष्ण ने उस नगरी का पुनर्निर्माण किया था जो कि पूर्व में भी अवस्थित रही है, जिसे पहले कुशस्थली नाम से जाना जाता था। उल्लेख मिलता है कि वैवस्वत मनु के कुल में रेवत नाम के एक राजा हुए जिन्होंने समुद्र के मध्य एक सुंदर नगरी का निर्माण करवाया था। द्वारिका नागरी के अनेक अवशेषों की पुरातनता लगभग तीस हजार वर्ष और उससे भी पूर्व से आरंभ कर लगभग दो हजार वर्ष तक की है; अर्थात वह पूरा टाईमलाईन, जिसे हम इतिहास की पुस्तकों में अब तक पढ़ते आ रहे हैं वह भ्रामक है, हम उससे कहीं अधिक पुरानी संस्कृति है जितना कि हमें अब तक बताया जाता रहा है। भारतीय भूभाग में अनेक समानांतर और उन्नत संस्कृतियां विद्यमान रही है इसलिए केवल हड़प्पा संस्कृति को केंद्र में रख कर अतीत को तौलना-नापना अनुचित है।