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"यह गुणग्राम पाँचवाँ मृगशिरा नक्षत्र है। इसमें तीन तारे चमकते हैं। आकार मृगमुख सा है । यह सुनयनाकृत स्तुति है । इसमें १. जानकीजी का समर्पण २. हाथ जोड़कर विनय और ३. चरण ग्रहण : ये ही तीन तारे चमकते हैं । प्रेम पंक जनु गिरा समानी : कहकर मृगमुखाकार कहा । क्योंकि बोल नहीं सकती ।"