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इस स्तोत्र की विशेषता यह है कि इसमें वेदरूपी कल्पवृक्ष के परिपक्व फल “निगमकल्पतरोर्गलितं फलं” अर्थात श्रीमद्भागवतमहापुराण के प्रथम स्कन्ध से अन्तिम स्कन्ध तक वर्णित भगवान पुराणपुरुषोत्तम विष्णु की दिव्यातिदिव्य लीलाओं के आधार पर बने नामों को स्तोत्र रूप में निबद्ध किया गया है.
पुरुषोत्तम मास (मल मास अथवा अधिक मास भी कहा जाता है) में पुरुषोत्तमसहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ आदि करके भगवान की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है क्योंकि सभी मासों में अधिमास या मलमास भगवान विष्णु की पूजा के लिए अत्यन्त विशिष्ट है. भगवान नारायण ने स्वयं कहा है -
“हे द्विजश्रेष्ठ ! सभी माह सूर्यदेव की संक्रान्ति के कारण बनते हैं परंतु अधिक मास में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती इसलिए वह मेरी शरण में आया है तभी से यह पुरुषोत्तम मास मुझे अत्यन्त प्रिय है. हे विप्र ! मैं सदैव इस पुरुषोत्तम मास के स्वामी के रूप में प्रतिष्ठित रहता हूँ. आगे भगवान कहते हैं कि मेरे प्रिय पुरुषोत्तम मास में जप आदि करने से संसार में कोई वस्तु ऎसी नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सकता”.
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