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सत्य हरिश्चंद्र (9.9.2020)
‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का वर्ष 1875 में लिखा हुआ चार अंकों का नाटक है। इस नाटक को ‘काशी पत्रिका’ नामक हिन्दी पाक्षिक में पहली बार वर्ष 1876 में प्रकाशित किया गया। इसमें सूर्यवंशी राजा हरिश्चन्द्र की कथा है। हमारे समाज में जब भी सत्य और सत्यवादी की चर्चा होती है तो महाराजा हरिश्चन्द्र का नाम जरूर लिया जायेगा। सूर्यवंशी सत्यव्रत के पुत्र राजा हरिश्चंद्र, जिन्हें उनकी सत्यनिष्ठा के लिए आज भी जाना जाता है। इस नाटक की कहानी राजा हरिश्चंद्र, उनकी पत्नी तारा और पुत्र रोहिताश्व की कहानी है |
लेखक परिचय:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) का मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से ही माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया । हिंदी साहित्य में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उन्होने नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया। उनके मौलिक नाटक हैं वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति,सत्य हरिश्चन्द्र, श्री चंद्रावली, विषस्य विषमौषधम् भारत दुर्दशा, नीलदेवी, अंधेर नगरी, प्रेमजोगिनी, सती प्रताप | इसके अतिरिक्त उन्होने कई अनूदित नाट्य-रचनाएँ, निबंध संग्रह, काव्यकृतियां, कहानी, यात्रा-वृत्तान्त और उपन्यास |
Title : SATYA HARISHCHANDRA
Writer : Bhartendu Harishchandra
Adaptation in Hindi : Dr. Govind ‘Chaatak’
Director : Chiranjit
Artists: Ashok Rampal, Raj Kumari Prasad, Ramavtar Sharma, Yatinra Srivastava, C.S.Nagar, Kishor Sharma, Rajgupt Rajeev,Jai Narayan Sharma, Deena Nath
(Refurbished by Sh.Vinod Kumar, Programme Executive, CDU, DG; AIR. This play was first broadcast on 13.9.1983)
A presentation of Central Drama Unit,DG; AIR.