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जैन धर्म श्रमण संस्कृति से निकला धर्म है। इसके प्रवर्तक हैं २४ तीर्थंकर हैं, जिनमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) तथा अन्तिम तीर्थंकर भगवान वर्धमान महावीर हैं। जैन धर्म की अत्यन्त प्राचीनता सिद्ध करने वाले अनेक उल्लेख साहित्य और विशेषकर पौराणिक साहित्यों में प्रचुर मात्रा में हैं। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर जैन धर्म के दो सम्प्रदाय हैं। समयसार एवं तत्वार्थ सूत्र आदि इनके प्रमुख ग्रन्थ हैं। जैनों के प्रार्थना - पूजास्थल, जिनालय या मन्दिर कहलाते हैं।
'जैन' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित '। जो 'जिन' के अनुयायी हैं उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है संस्कृत के 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला।
आचार्य डॉ. लोकेश मुनि जी एक बहुमुखी विचारक, लेखक, कवि और समाज सुधारक पिछले 33 वर्षों से समाज में राष्ट्रीय चरित्र निर्माण, मानवीय मूल्यों के विकास और गैर-हिंसा, शांति और आपसी सहयोग स्थापित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने सामाजिक बुराइयों को दूर करने और नैतिक मूल्यों के प्रचार के लिए पूरे देश में लगभग 20000 किलोमीटर की पैदल यात्रा की है। इन मूल्यों को व्यावहारिक आकार देने के लिए उन्होंने “अहिंसा विश्व भारती ” की स्थापना की और इस तरह दुनिया भर में फैली गतिविधियों के अपने क्षेत्र को बनाया। अहिंसा विश्व भारती की स्थापना के साथ उन्होंने सामाजिक बुराइयों जैसे महिला बच्चे के गर्भपात, नशीली दवाओं की लत, पर्यावरण प्रदूषण आदि के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन शुरू किया। वह भारत का पहला विश्व शांति केंद्र दिल्ली के पास गुरूग्राम में स्थापित कर रहे है।
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