आशुतोष दुबे जी जिस तरह कविता में सहज और ईमानदार रहते हैं वैसे ही बातचीत में भी। यह एपिसोड शानदार है।
@ajeyklg18 күн бұрын
बहुत अच्छे जवाब दिए। बहुत फ्रूटफुल चर्चा। समझना, अच्छा लगना और हासिल हो जाने का फर्क खूबसूरती से बताया
@vikramadityajha892420 күн бұрын
अंजुम जी, आपके हर एपिसोड में दर्शकों की रुचि का एक नया स्तर बनता है। कृपया एक और सवाल जोड़ें: "लेखकों की पसंदीदा रचना कौन सी है?"
@divyasuhag516422 сағат бұрын
आशुतोष जी बोल रहे थे और जैसे मैं बोल रही थी.. इतनी सुंदरता से कहना मेरे लिए संभव नहीं था❤
@ravindravyas40017 күн бұрын
आशुतोष दुबे मेरे प्रिय कवि हैं। उनको सुनना-पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है। वे चाहें किसी कार्यक्रम में बोल रहे हों, किसी गोष्ठी में या फिर गपिया ही क्यों ना रहे हों। उनसे कविताएं सुनना और भी अच्छा लगता है। दो टुकड़ों में मैंने उन्हें फिर से सुना, इस बार हिंदवी की ‘संगत’ (92) में। फिर जाना कि उन्हें सुनना कितना तरल-सजल अनुभव है। उन्हें सुनते हुए उन्हीं की एक कविता याद करता रहा- ‘आवाज़ भी एक काया है जिसमें असंख्य आत्माओं का वास है।‘ वे इंदौर को याद कर रहे थे, इंदौर के लोगों को। अपने घर, मोहल्ले, मिलों और मज़दूरों को। मेले-ठेले-उत्सवों को। अपने पिता और मां को। भाई और बहन को। और जिस संयत भाव से वे बोल रहे थे, उसमें उनकी आवाज़ की काया में असंख्य आत्माएं सांसें ले रही थीं। जब वे अपनी मां के बारे में बात कर रहे थे, मुझे लगा उनके वाक्य रुकी रुलाई पर हिचकोले खाते मुझ तक आ रहे हैं। बहुत संयत वे बोल रहे थे। यह उनकी कविताओं की भी खूबी है कि वे अपनी भावप्रवण कविताओं में एक रचनात्मक धैर्य धारे रहते हैं। एक साधा हुआ संयम। वृथा भावुकता से अपने को बचाते, मितकथन के साथ। उनकी कविताओं में वह सब है, जो वे कह रहे थे। यदि नज़र उठाकर और कान धरकर उनके बोले को देखें-सुनें तो उसमें बहुत सारे दैनिक चमत्कार घटित होते देख सकते हैं। उनकी लगभग हर कविता हमारे जीवन में घटित होने वाले दैनिक चमत्कारों से मिलकर बनी हैं। मैं जानता हूं, यह अतिशयोक्ति मान लिया जाएगा लेकिन मुझे कहने दीजिए उनकी कविता उत्तर भारतीय मध्यमवर्ग के जादुई यथार्थवाद की (उम्मीद करता हूं जादुई यथार्थवाद उनकी कविता के संदर्भ में रूढ़ अर्थों में नहीं लिया जाएगा) छवियां ही हैं। हमारे दैनिक जीवन में रोज़-ब-रोज़ घटित होने वाले चमत्कारों से मिलकर बनी कविता का पसरा संसार। उनकी एक कविता शीर्षक ही है-चमत्कार : न कहीं कुछ कौंधा। न कहीं कुछ प्रगट हुआ। न कहीं कुछ लोप हुआ। हवा वैसे ही चली। चिड़िया वैसे ही उड़ी। जल वैसे ही बहा। फूल वैसे ही खिले। तारे वैसे ही उगे। बस उसने आँख उठाकर नज़र भर देखा। उसका हाथ अपने हाथों में लिया। कोई बात निकली। खपरैल से चूल्हे का धुआँ उठा। दो बूढ़े एक पुलिया पर बैठे। प्रवासी पक्षी पेड़ को शुक्रिया कह अपने देश उड़ा। एक अनलिखा पत्र पढ़ा। एक फोन मन में बजा। एक भूला हुआ स्वाद जीभ में जगा। इस तरह एक दैनिक चमत्कार हुआ। मेरी निजी राय में आशुतोष दुबे की यह एक प्रतिनिधि कविता है और इसमें उनकी कविताओं को समझने के वे कुंजियां हाथ लगती हैं जिनसे उनकी कविताओं के मर्म तक पहुंचा जा सकता है। दैनिक जीवन के तमाम चमत्कार उनकी कविताओं में बाआसानी लक्षित किए जा सकते हैं। जैसे यही कि पिता घर लौटते हैं कविता में होता है : एक दिन चिता से उतरकर लौट आते हैं पैदल अपनी तस्वीर में। इस ‘संगत’ में वे साहस से अपनी बात कहते हैं, पॉलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश नहीं करते हैं। उनके कहने में साफ़गाई और दृढ़ता है। शमशेर, तेजी ग्रोवर और रुस्तम सिंह की कविताओं पर उन्होंने मार्मिक बातें कहीं। वे सही कहते हैं कि कविता का सुख लिख जाने में है। प्रेषित करना कविता को बाज़ारवादी बनाता है। यह सुख उनकी कविता में बहुत है। उनकी कविता में कुछ भी अतिरिक्त नहीं क्योंकि फिजूल भले ही ज़रूरी का पीछा करता रहता है लेकिन ज़रूरी को उसकी जगह से हटा नहीं पाता है। और यही कारण है कि उनकी कविताएं किसी काग़ज़ पर कुछ पंक्तियों में, उनके किए-धरे का सारांश है, और उसके बाद काफ़ी जगह छूटी हुई है, छूटी हुई ख़ाली जगह में, उनके अनकिए का सारांश है। और यह भी कि न्यूनतम के सूनसान में, हमें जाननी होती है समूची कथा। कथा इतनी कि वह भी एक दैनिक चमत्कार है। इस संगत को सुनते हुए यह भी लगा कि पौने दो घंटे के इस एपिसोड में अंजुम शर्मा यदि आशुतोष दुबे की बेहतर और बेहतरीन कविताओं पर कुछ और दिलचस्प बातें करते तो यह और भी प्रभावी बनता। आशुतोष दुबे का सिनेमा के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वे सिनेमा पर लगातार लिखते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने समालोचन पर राजकपूर पर लिखा। अंंजुम यदि उनके सिनेमा-प्रेम पर भी कुछ सवाल करते तो यह और रोचक बनता। खैर। फिर भी संगत को इस कवि से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया।
@satyabalasingh759411 күн бұрын
बहुत बहुत धन्यवाद अंजुम जी
@hemantdeolekar1117 күн бұрын
कोरस गायिका कविता की अनुभव प्रक्रिया तक पहुँचने के लिए कवि को सलाम
@Navgeetdhara20 күн бұрын
अंजुम जी आपने मनोरंजन पर मुश्किल सवाल कर दिया! गद्य कवियों के पास इसका जवाब नहीं है भाई! इस विषय पर आशुतोष जी का जवाब भी किसी के समझ में नहीं आएगा। आपको आया क्या? वाह! क्या जवाब है! पाठक की, संप्रेषण की चिंता नहीं करनी चाहिए! धन्य है!
@arpanjamwal206619 күн бұрын
कविता के विषय में बहुत ही गहन और सुंदर बातें कहीं आशुतोष जी ने .... सार्थक चर्चा
@indirasharma890619 күн бұрын
सुन्दर साक्षात्कार ये कड़ियां कभी खत्म न हो 😊
@kamlasharmam868820 күн бұрын
बहुत सुन्दर साक्षात्कार.. आशुतोष दुबे जी के उत्तर बहुत अच्छे लगे, उनके उत्तरों में मुझे अपने बहुत सारे प्रश्नों के भी उत्तर मिले। धन्यवाद अंजुम जी आपके माध्यम से पसंदीदा कवि को सुनने का सौभाग्य मिला..
@radheshyamsharma202620 күн бұрын
कितना अच्छा लगता है रचनाकारों को सुनना
@Navgeetdhara20 күн бұрын
अनुवाद के म मामले में शानदार जवाब दिया दुबे जी ने।
@hemantdeolekar1117 күн бұрын
परीक्षा हॉल वाली कविता की अनुभूति बहुत मर्मस्पर्शी है
@shreesandeepji19 күн бұрын
एक और समृद्ध करने वाला साक्षात्कार । अनेकों धन्यवाद 🙏🙏🙏
@mamta-kalia19 күн бұрын
आज ही शुरू कीजिए कहानी
@maheshpunetha552221 күн бұрын
संयोगवश की भूमिका कमाल की है।
@amanvats502821 күн бұрын
बहुत सुन्दर व उम्दा 🌹🙏
@sandhyagangrade736021 күн бұрын
रोचक बातचीत
@nachiketachoubey28153 күн бұрын
Aashutosh ji ne badi saafgoi se avam kavi ke dard ko byan kiya hai bat khai aur sahi hai ki narrative chalaiye to aapko sweekriti milti jayegi Varna hashiye par dal diye jayenge
@sandhyagangrade736020 күн бұрын
कोर्स गायिका वाकई बहुत अद्भुत है
@sonuyashraj926321 күн бұрын
स्वागत
@amankashyap166016 күн бұрын
आप सभी लेखकों से पूछे कि उनके प्रिय लेखक कौन है
@happysingh632919 күн бұрын
एक हिन्दी-प्रेमी के नाते मुझे बड़ी आशा हो चली थी इस लड़के (अंजुम) से कि ये कुछ गंभीर चीजें, गंभीरता के साथ प्रस्तुत करेगा। शुरू में थोड़े बेहतर एपिसोड आये भी। मगर अब जो बात अक्सर 'इरिटेट' करती है, वो है इसका बड़बोलापन। ये अपनी पूरी ऊर्जा स्वयं को हिन्दी का मूर्धन्य या दिग्गज या सर्वज्ञाता साबित करने में खर्च कर जाता है। एक छिछोरापन जाहिर होता है। सामने अक्सर ही कोई स्थापित साहित्यकार होता है, जिसने इस लड़के की कुल उम्र से अधिक समय साहित्य-चिंतन में व्यतीत किया होता है, मगर यह खुद को 'परमज्ञाता' शो करने के चककर में (जो कि अक्सर रटे हुए फैक्ट्स होते हैं) कई बार बेहूदगी सी करता नज़र आता है। यह काफी दुःखद है। मेरा सुझाव है, अंजुम को वाकई में और शालीन और गंभीर होने का प्रयास करना चाहिए।
@Theuddshow19 күн бұрын
आप अंजुम को निरुत्साहित कर रहे हैं। एक सुंदर एवं भावी साहित्यकार को अवरोधित कर रहे हैं। आप उसे उत्साहित करें कि वह और बेहतर करे। निंदा में जो सुझाव दिए जाते हैं उसमें हेकड़ी छिपी होती है। जबकि आलोचना में सुझाव विनम्रता लिए होता है। आप उससे उम्र में बड़े हैं और बुद्धिमान भी हैं। आप जानते हैं कि,इस दुनिया में दो लोग ऐसे होते हैं जो पराजित होकर प्रसन्न होते हैं। प्रथम माता पिता और दूसरा गुरु! प्रत्येक गुरू को अंजुम से प्रसन्न होना चाहिए कि वह बेहतरीन कर रहा है। और शायद लोग प्रसन्न भी होते होंगे। मनुष्य हमेशा एक दूसरे से सीखता है। संतोष आनंद जी के गाने की पंक्ति है कि जिंदगी और कुछ नहीं तेरी मेरी कहानी है। कुछ पाकर खोना है कुछ खोकर पाना है। जीवन का मतलब तो आना और जाना है। दो पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है, जिंदगी और कुछ नहीं तेरी मेरी कहानी है।। धन्यवाद!
@Navgeetdhara20 күн бұрын
अंततः आशुतोष दुबे जी ने भी मान लिया कि समाज में कविता के पाठक नहीं हैं। यद्यपि अंत में यह भी कहा कि यह चिंता की बात नहीं है। फिर लिख किसके लिए रहे हैं?
@अवधेशप्रतापसिंह-संदल11 күн бұрын
अच्छा साक्षात्कार है, लेकिन पाठक को लेकर लेखकों को दृष्टिकोण थोड़ा बदलना चाहिए।
@latakhatri290620 күн бұрын
आशुतोष जी को फिल्म संगीत की गहरी समझ है,वे इस पर लिखते भी आए हैं, आश्चर्य आपने इस पहलू पर बात नहीं की।
@nachiketachoubey28153 күн бұрын
Beshak prkashak aur Chanel sampadkon ko bhi poochiye ki aap log sada samudra par hi kyon baraste hai aap log johri bankar gudadi ka lal kyon nahin khojte hain
@RekhaKumari-vg6nq20 күн бұрын
Aapkimatajikonaman
@Navgeetdhara20 күн бұрын
अंजुम जी, आपने 41वें मिनट के बाद दो कविताओं के अंश पढ़े और उन्हें कवि की मान्यता का विचार मानकर प्रश्न किया। इससे यह साबित होता है कि ये कविता नहीं, बल्कि विचार मात्र हैं। एक बात यह भी कि आशुतोष भी नहीं बता पाए कि कविता क्या है! वे कैसे तय करते हैं कि कविता है या नहीं! आशुतोष जी ने कविता के पाठक की बात भी की है। क्या सचमुच गद्य कविता का कोई आम पाठक भी है? गद्य कविता ने तो कविता के पाठकों को कविता से दूर कर दिया है। गद्य कविता वैसे भी पाठकों के लिए नहीं, बल्कि प्राध्यापकों के लिए और विद्यार्थियों के लिए लिखी गई और लिखी जा रही हैं। राजा अवस्थी, कटनी (मध्यप्रदेश)
@sonuyashraj926312 күн бұрын
अपनी विरासत और कविता पर बेबाक टिप्पणियां। सहज प्रभावी संवादों से इस संगत ने बांध लिया ।
@SanjayKumar-cf3bs19 күн бұрын
Duruhta ki wakalat
@prakashchandra6921 күн бұрын
हिंदवी दक्कनी शब्द है, लेकिन यह हिन्दवी संगत विंध्योतर है विंध्यपार नहीं। ऐसा क्यों? क्या कोई वर्जना है?
@marmmanishsingh933319 күн бұрын
Arrey Kavita toh reh hi gayi.. Ashutosh Ji se kavita toh padhwa lete.. Aapne beech mein kaha bhi tha ki wo padhenge..