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सत्संग की महिमा भाग -2 , संतों की वाणी
आजु धन्य मैं धन्य अति जद्यपि सब बिधि हीन।
निज जन जानि राम मोहि संत समागम दीन।।
बडे़ भाग पाइब सतसंगा, बिनहिं प्रयास होई भव भंगा।
तबहिं होइ सब संसय भंगा, जब बहुकाल करिअ सतसंगा।।
भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी।।
पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता। सतसंगति संसृति कर अंता।।
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