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इस ध्यान का उद्देश्य है, अपने अहंकार को, ‘मैं’ की भावना को लुप्त कर देना। हमारा अहं हमें संकुचित करता है, और जब हम अपना अहं खो देते है, तो हम विशाल चेतना बन जाते हैं।
बिलकुल वैसे ही, जैसे एक साधारण-सी इल्ली अपना रूप खोकर एक सुंदर-सी तितली बन जाती है।
हम आध्यात्मिक आत्मा के रूप में इस पृथ्वी ग्रह पर अवतरित हुए है। यह पृथ्वी, नियति का यह मैदान, ऐसा है मानो पूरे ब्रह्मांड के बीच मिट्टी का बना छोटा-सा गोला! और हम तो यहाँ धूल के एक कण के बराबर भी नहीं हैं। फिर भी हम सब की अपनी-अपनी एक व्यक्तिगत पहचान है और हमारे अहं के कारण हमने इस व्यक्तिगत पहचान को कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से ले लिया हैं। हमारा अहं हमें वास्तविकता की गहराई में नहीं जाने देता, वह हमें सतह पर ही उलझाए रखता है।
हम आपको इस प्रभावशाली ध्यान में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं, जिसमें हम अपने अहं को विलीन करेंगे, सारे प्रतिरोधों को छोड़ देंगे और सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव करेंगे।
आइए, अपनी सीमितता के हर पहलू को समर्पित कर दें और परम चेतना से जुड़ जाएं।
00:00 - परिचय
08:06 - ध्यान
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