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स्वामीजी म्हाने दर्शन दीन्हा जी...
इस भजन को प्रतिदिन अवश्य सुनें, आपके रोम रोम मे बस जाएगा स्वामीजी का ये भजन..
स्वामीजी दर्शन दीन्हांजी
लय : सुनो
रचयिता : मुनि चम्पक
स्वामीजी म्हांनै दर्शन दीन्हांजी
दर्शन दीन्हां प्रेम स्यूं म्हारै माथै पर धर हाथ ।
स्वामीजी म्हांनै दर्शन दीन्हांजी |
म्हारै मनड़ै री पूछी दो बात। स्वामीजी म्हांनै...।। स्थायी ।।
सांवली सूरत सोवणी, तपुं तपुं करतो ललाट ।
काजलिया प्यालां जीसी, आंख्यां करै पल्लाट ।
कानां केश सुहावणा, लम्बी लम्बी लहराती लोल।
एकल भूहां भंवर सी, चढ़े सो चेहरो गोल ।
लम्बो कद लम्बी ग्रीवा, लम्बा-लम्बा गोडां तांणी हाथ |
तीखी-तीखी लम्बी-लम्बी आंगल्यां, हथैल्यां हिंगलु री जात।
भरवां अंग अंग भलकतो, चूड़ी उतार शरीर ।
सीनो बबर्ची शेर सो, मुद्रा मृदु गंभीर ।
मुखड़े ओपै मुंहपती, खांधै पर ओघो सुरंग ।
झोली डावा हाथ में, मलपती चाल मतंग |
उभऱ्या पगां री चलकती, नख धुति अजब अमीर ।
क्यूं रै? कह्यो स्वामी मुलकतां, खुलग्या म्हांरा तकदीर ।
आठै तेरस भाद्रवी, मेह अंधारी रात ।
'चम्पक' बिरधी भवन में सुपनै में सुपनै सी बात ।