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ऐतिहासिक विरासत ताला-चाबी की बावडी
राजगढ़ (अलवर) कस्बे के बाँदीकुई मार्ग स्थित दादूपंथी ठिकाना गंगाबाग राजगढ की प्राचीन एवं ऐतिहासिक विरासत महन्त जी की बावडी बनी हुई है। लोगो को नहाने एवं प्यास बुझाने के लिए पानी उपलब्ध कराने वाली यह बावडी भूजल स्तर नीचे चले जाने के कारण सूख गई है। बताया जाता है बावडी का निर्माण महन्त मलूक दास जी महाराज ने 18वी शताब्दी में अकाल राहत में अपने निजी खर्चे से शुरू करवाया था। जिससे लोगो को रोजगार उपलब्ध हो सके। दादूपंथी महन्तजी को स्टेट में जागीर मिली थी उस समय ठिकाना गंगाबाग के पास अकूत सम्पति थी। कहा जाता है इसके बाद रामदयाल दास जी महाराज ने कारीगरो से कलात्मक बावडी को पक्का बनवाया था। महन्त जी की बावडी लगभग दो हजार वर्गगज के आयताकार में बनी हुई है।
वास्तुकला की यह अनौखी बावडी - बावडी का निर्माण जमीन से एक मंजिल ऊपर तक इस प्रकार किया गया है कि यह बाहर से एक प्राचीन हवेली दिखाई देती है। बावडी का प्रवेशद्वार पर किवाड लगे हुए है जिन्हे बंद कर देने पर बावडी में प्रवेश बंद हो जाता है। यह बावडी ताले चाबी के नाम से भी जानी जाती है। बावडी के मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश करते ही पौली की छत्त पर राजस्थान की प्राचीन चित्रकारी पिछवाई शैली मे की गई है। जिसमें राधा-कृष्ण की लीलाओ को दर्शाया गया है। बावडी के अंदर शिव मन्दिर, गणेशजी की विशाल प्रतिमा एवं हनुमानजी महाराज की प्रतिमा लगी हुई। इसके अलावा पूज्य गुरूओ की चरण पादुकाए बनी हुई है।
बावडी के बाहरी हिस्से के दोनो ओर बनी हुई है छत्तरिया- महन्त जी की बावडी के बाहरी हिस्से के दोनो ओर दो विशाल छत्तरिया बनी हुई है। अलवर जिले में महन्तजी की बावडी स्थापत्य कला का एक अनुठा एवं उत्कृष्ट नमूना है। बावडी के अंदर करीब बीस फीट चौडा पुल बना हुआ है जो बावडी को दो भागो में विभक्त करता है। बावडी में चार मंजिल तथा उत्तर-दक्षिण में तिबारे बने हुए है। जिनमे पत्थर के खम्भे लगे हुए है। बावडी के दोनो ओर सौन्दर्यकरण के लिए बाग लगाए गए जिससे ठिकाना गंगाबाग को आय भी हो सके।
ठिकाना गंगाबाग के महन्त प्रकाशदास महाराज का कहना है -बाल मुकन्ददास महाराज ने बावडी के सौन्दर्यकरण के लिए दोनो ओर बाग बनवाए। बावडी के दोनो ओर प्राचीन स्थापत्यकला की दो छत्तरिया बनी हुई है। अलवर रियासत के दादूपंथी महन्त जी को राजगुरू की गद्दी दी गई थी। स्टैट की जागीर होने के कारण ठिकाना गंगाबाग के पास अकूत खजाना था। सन् 1990 में बावडी में लबालब पानी भर गया था। लेकिन भूजल स्तर नीचे जाने के कारण बावडी का पानी सूखता गया। बावडी की खुदाई भी करवाई गई लेकिन पानी नही निकल पाया। आज यह बावडी पेयजल के अभाव में अपनी आभा खोती जा रही है।
Special thanks:-- महंत प्रकाश दास और मनु पत्रकार
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