i luve historical places nd British cemetery, 09/11/2021 ♥️🌷♥️
@sameerpradhan30253 жыл бұрын
मै इलाहाबाद, आज के प्रयागराज का रहने वाला हू तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भारतीय मध्यकालीन इतिहास में स्नातक कर रहा हू। क्या आप जानते हैं की इलाहाबाद में कंपनी बाग या अल्फ्रेड पार्क जो अब चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है सन 1857 से पहले कभी वहाँ घनी मुस्लिम आबादी हुआ करती थी ? बहुत कम लोगों को मालूम है की कंपनी बाग़ की मिटटी हज़ारो लोगों के खून से सनी हुयी है। देश की आज़ादी में जाने कितने जांबाजों ने अपनी जान गंवा कर हमें आजादी का तोहफा दिया। और इन जांबाज शहीदों में इलाहाबाद के मेवाति पठानों का नाम सबसे ऊपर आएगा। उन्होंने 1857 की क्रांति मे हर मोड़ पर न सिर्फ अंग्रेजों से लोहा लिया बल्कि उन्हें करारी मात भी दी। इलाहाबाद के इतिहास के पन्ने मेवातियों के बलिदान की गौरव गाथा सुनाते हैं। कंपनी बाग़ के दक्षिणी कोने पर समदाबाद और छीतपुर नाम से मेवाति पठानों के गांव थे, जहां पर आज मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज है। सन् 1857 के गदर में इन गांवों के लोगों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें बागी घोषित करते हुए उत्तर भारत मे बगावत को कुचलने के लिये मद्रास से ईस्ट इंडिया कंपनी की छटवीं ब्रिगेड के कमाण्डर, कर्नल जेम्स जॉर्ज स्मिथ नील के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की (तोपों से लैस) एक आर्टिलरी रेजिमेंट भेजी। कर्नल नील जिसने 1857 मे बगावत को कुचलने के लिये उत्तर भारतीयों का सबसे बड़ा नरसंहार किया था, जिसको Butcher of Allahabad का खिताब दिया गया था। उसने मुस्लिमो की आबादी वाले इन दोनों गाँवों को पूरी तरह से तबाह कर दिया, जिसमे हज़ारो लोग मारे गए । बाद मे यह जगह साफ कर एक गार्डन बनाया गया और यहां अंग्रेजी रेजिमेंट की कंपनी बसा दी गई जिसके चारो तरफ खूबसूरत पेड पौधे लगा कर एक बाग की शक्ल दी गई और इसका नया नामकरण किया गया - कंपनी गार्डन। आज भी वहाँ पर बहुत सी पुरानी मज़ारों और मस्जिदों के अवशेष देखने को मिल जायेंगे जो 1857 से पहले शहर की शोभा हुआ करती थी। छीतपुर और समदाबाद के मेवातियों के अतिरिक्त शहर के रसूलपुर के मेवाती, महगांव, कोल्हा, सराय सलीम, (सुलेम सराय) सिरोधा, फतेहपुर, बरमहर, मुख्य चायल, भिकपुर, पावन, शेखपुर, मसीहा, बारागांव, मुइनुद्दीनपुर, गौसपर, बेगम सराय, ओदानी, बेली, बधरा, नीमी बाग, चेतपुर, रसूलपुर देहू, मिनहाजपुर, रोही, गयासुद्दीनपुर, कसमनदा, सराय भोजाह, उमरपुर शेवान आदि गांवों के मुस्लिम भी मेवातियों के साथ आजादी की लड़ाई में शरीक रहे। दरअसल 4 जून 1857 को जब इलाहाबाद खबर पहुंची कि बनारस में सिख रेजीमेंट नंबर 11 के कई सिपाही बिगड़कर इधर आ रहे हैं, तो यहां की पलटन में भी उथल-पुथल शुरू हो गई। छह जून की शाम दो तोपों के साथ पल्टन की एक कंपनी लेफ्टिनेंट हिक्स और हारवर्ड के नेतृत्व में दारागंज में नाव के पुल की रक्षा के लिए भेजी गई। पर विद्रोही सिपाहियों के बीच अंग्रेजों की एक न चली। ठीक नौ बजे सिपाहियों ने आतिशबाजी का एक बान (हवाई) छोड़ा, जिसके जवाब में छावनी से भी बान छोड़ा गया। विद्रोही रुख देख दारागंज से लेफ्टीनेंट हिक्स और अलोपीबाग से लेफ्टीनेंट हारवर्ड ने किसी तरह भागकर किले में पनाह ली। उसी रात चैथम लाइन छावनी के मेस हाउस में भी सिपाही विद्रोही हो गए तो यहां के अंग्रेज अफसरों ने भी भागकर किले में शरण ली। इसी आपाधापी में विद्रोहियों ने अंग्रेजों के सभी मकान जला दिए थे, बहुत से अंग्रेज़ अधिकरियों और सैनिको को मार दिया गया। जिन्की कब्रे आज भी इलाहाबाद के नये यमुना पुल के किनारे बहराना क्षेत्र मे मौजूद है। इतना ही नहीं विद्रोहियों ने सरकारी खजाने से तीस लाख रुपये भी लूट लिए थे। जेल से तीन हजार कैदियों को मुक्त करा लिया गया था, जिनमें से अधिकतर विद्रोहियों के साथ मिल गए। शहरियों और पुलिस ने भी उनका साथ दिया। क्रांतिकारियों का जोश ऐसा था कि अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी। इलाहाबाद शहर को अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी का एलान कर दिया गया और महँगाव के महान क्रन्तिकारी मौलवी लियाकत अली के नेतृत्व में इलाहाबाद शहर मे पुरे 14 दिनों तक बागी क्रांतिकारियों का शासन रहा। यधपी इलाहाबाद किले में अंग्रेज़ो ने खुद को बंद कर के सुरक्षित कर लिया था, और क्रांतिकारी इलाहाबाद किले पर कब्ज़ा करने में नाकामयाब रहे थे । 1857 की क्रांति को बुरी तरह कुचलने के बाद इलाहाबाद पर अन्ग्रेज़ो का पुन: नियन्त्रण हो गया और मौलवी लियाकत अली भी गिरफ्तार कर लिये गये तथा उनको आजीवन कालापानी (अंडमान जेल) भेज दिया गया जहाँ उनको घोर यातना दे कर मार डाला गया ।
@apuiitochhawng3 жыл бұрын
Thank you. Very interesting video. I like reading old tombstones.
@Danishullah_14 жыл бұрын
very nice effort dear , i like historical grave so nice to introduce, i am from Pakistan
@usmanAli-hw5xu3 жыл бұрын
bhai faisalabad ma b British Army cemetery ha gora qabristan
@AnthonydasAnthony-gt9ed Жыл бұрын
Nice video. Restvin peace. Amen
@CarolineAnandSiddiqui3 жыл бұрын
Very nice video 👌
@putramatebean26062 жыл бұрын
The greatest soldiers of British who were burried in India must be the great soldiers. Rest in peace
@gerardfullinfaw34522 жыл бұрын
Really old graves, amazing!
@AngelinaBankai3 жыл бұрын
Sharm ane chahiye aise ghatiya logo ko jinhone mare huve logo ko bhi nhi chora Un k karmo ki saza to bagwan unhe de chuka h . Fir yh sab kisly har angreej khrab nhi thy.
@rijeshmathews10 ай бұрын
Sone ki button ki thaskari ke liye khabron ko bhi nahin choda yeh hai insaaniyat
@Danishullah_14 жыл бұрын
city name please for this graveyard please
@dheerajprayagraj75234 жыл бұрын
Dear thank you for comment I suggest watch again my video I already mention place name at very beginning