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lyrics:
ज़रद बसन-वाला गुल चमन देखता था।
झुक झुक मतवाला गावता रेखता था।।
श्रुति युग चपला से कुण्डलें झूमते थे।
नयन कर तमाषे मस्त हृै घूमते थे।।
रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रँग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून।।
अब रहीम मष्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।
साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम।।